Organic Gift

Author
Parker Palmer
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Image of the Weekचेतन उपहार
-- पार्कर पामर (११ नवंबर, २०१५)

सालों पहले, मैंने डोरोथी डे को बोलते सुना। कैथोलिक कार्यकर्ता आंदोलन की संस्थापिका, न्यूयॉर्क के लोअर ईस्ट साइड पर गरीबों के बीच रहने की उनकी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता ने उन्हें मेरे लिए एक अनुकरणीय व्यक्ति बना दिया था। इसलिए उनके भाषण के दौरान जब मैंने उन्हें “'कृतघ्न गरीब” के बारे में बोलते सुना तो मुझे बहुत गहरा झटका लगा।

जब तक इस बात ने मुझ पर एक जेन कोआन की तरह प्रहार नही किया, मैं समझ नही पाया कि ऐसी उपेक्षापूर्ण बात ऐसे संत के मूँह से कैसे निकल सकती है। डोरोथी डे कह रहीं थीं, “गरीबों को यह कुछ समझ कर न दें कि बदले में आपको उनका आभार मिलेगा ताकि आप अपने बारे में अच्छा महसूस कर सकें। अगर आप ऐसा करते हैं, तो आपका देना कम और अल्प-कालिक होगा, और गरीबों को उसकी ज़रूरत नहीं है; उससे वो और गरीब हो जाएंगे। तभी दो अगर आपके पास देने के लिए ऐसा कुछ है जो आप ज़रूर देना चाहते हैं; तभी दो अगर आप ऐसे व्यक्ति हो जिसके लिए कुछ देना अपने आप में एक प्रतिफल है।”

जब मैं ऐसा कुछ देता हूँ जिसपर मेरा अधिकार नहीं है, तो मैं एक झूठा और खतरनाक उपहार देता हूँ, एक ऐसा उपहार जो दिखने में तो मेरा प्यार लगता है, पर असल में प्याररहित है - ऐसा उपहार जो दूसरे की प्यार पाने की ज़रूरत पर ध्यान देने की बजाए, सिर्फ अपने आप को दिखाने के लिए दिया जाता है। इस अभिमानी और गलत धारणा पर आधारित दिया गया उपहार कि भगवान के पास मुझे माध्यम बनाये बिना, अपना प्यार उन लोगों तक पहुंचाने का और कोई तरीका नहीं है, ऐसा अपहार प्याररहित और विश्वासरहित होता है। हाँ, हम सब एक दूसरे के लिए और समुदाय के लिए बने हैं, एक दूसरे को मदद और प्यार करने के लिए। लेकिन समुदाय दोनों तरीकों से चलता है: जब हम प्यार करने की अपनी क्षमता की सीमा तक पहुँच जाते हैं, तब समुदाय का अर्थ है यह विशवास रखना कि ज़रूरतमंद व्यक्ति के लिए कोई और देने वाला अपलब्ध हो जाएगा।

मैं अपनी खुद की प्रकृति का उल्लंघन कर रहा हूँ, इसका एक संकेत है एकदम थक के चूर हो जाना। जबकि आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि यह स्थिति बहुत ज़्यादा देने के प्रयत्न का परिणाम है, लेकिन मेरे अनुभव में ऐसी थकान वो देने से होती है जो मेरा है ही नहीं - आखिर में बहुत कम दिया जाता है! वो परम थकान निश्चित ही खालीपन की एक अवस्था है, लेकिन वो हमारे सब कुछ दे देने का परिणाम नहीं है; वो तो केवल वो शून्यता दर्शाती है जिसमें से शुरुआत से मैं देने की कोशिश कर रहा था।

अपनी कविता “अब मैं खुद बन जाती हूँ,” में मे सार्टन प्राकृतिक जीवन में से ली गयी छवियों को इस्तेमाल करते हुए एक अलग किस्म की भेंट का विवरण देती हैं, एक अलग किस्म के देने के तरीके में निहित, ऐसा तरीका जो थकान में नहीं, बल्कि उर्वरता और प्रचुरता में बदल जाता है:

पकते हुए फल की तरह हौले- हौले
उपजाऊ, अनासक्त, और हमेशा क्षीण,
गिरता है लेकिन जड़ को नहीं थकाता …

देते हुए भी, जब में वो उपहार किसी को देता हूँ जो मेरी अपनी प्रकृति का हिस्सा है, जब वो मेरे अंदर की एक चेतन जगह से निकल कर आता है, तो वो अपने आप को तरो-ताज़ा कर देगा - और मुझे भी। सिर्फ जब मैं ऐसा कुछ देता हूँ जो मेरे अंदर पैदा नहीं हुआ है, तभी मैं अपने आप को कमज़ोर बनाता हूँ और दूसरे को भी नुक्सान पहुंचाता हूँ, क्योंकि जो उपहार ज़बरदस्ती से, अचेतन अवस्था में, या अवास्तविकता में दिया जाता है, उससे नुक्सान ही होता है।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं कि जो चीज़ आपकी नहीं होती, उसे देने से आपको थकान होती है? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव सबसे बाँटना चाहेंगे जब अचेतन उपहार देने के जाल में फंसने का अर्थ आपको ठीक से समझ आया हो? ऐसी कौनसी साधना है जो आपको चेतन उपहार देने की राह पर चलने में मदद करती है?

पार्कर पामर की पुस्तक, “अपनी ज़िंदगी को खुद बोलने दो: अपनी योग्यता की आवाज़ को सुनना” से उद्धृत।
 

Excerpted from Parker Palmer's book "Let Your Life Speak: Listening for the Voice of Vocation"


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