The Only Power of the Mystic

Author
Hazrat Inayat Khan
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Image of the Weekयोगी की एकमात्र शक्ति
- हजरत इनायत खान (७ अप्रैल, २०१३ )

योगी के पास केवल एकमात्र शक्ति है - प्रेम शक्ति।

उस एक चीज़ में हर शक्ति छुपी है जिसे हम प्रेम के नाम से जानते हैं। दान, उदारता, दया, स्नेह, धैर्य, और सहनशक्ति - ये सब शब्द एक ही चीज़ के अलग अलग पहलू हैं; वे केवल एक ही चीज़ के अलग अलग नाम हैं: वो चीज़ है प्रेम। चाहे यह कहा जाए कि 'भगवान प्रेम है", या इसे कोई और नाम दिया जाए, सब नाम ईश्वर के ही नाम हैं; और फिर भी प्यार के हर रूप की, और प्यार के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले हर नाम की, अपनी ही खासियत है और अपना कुछ अलग ही कार्य-क्षेत्र भी। दयाभाव में प्रेम एक चीज़ है, सहनशीलता से किया प्रेम कुछ और है, उदारभाव से किया प्रेम अलग, धैर्यभाव से किया प्रेम कुछ और; लेकिन फिर भी, शुरू से आखिर तक है प्रेम ही। इसलिए यह याद रहे कि आध्यात्मिक पथ की ऊँचाई तक पहुँचने के लिए, ज्ञान का उतना महत्त्व नहीं है; तंत्र-मन्त्र, योग या सिद्धियों को प्राप्त करने का ज्ञान भी उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है - हृदय की गुणवत्ता को विकसित करना।

कोई पूछ सकता है: हृदय की गुणवत्ता को कैसे विकसित किया जा सकता है? उसका सिर्फ एक ही रास्ता है: इस राह पर बढ़ता हर कदम नि:स्वार्थ उठाया जाए, क्योंकि स्वार्थ ही एक ऐसी चीज़ है जो हमें अपने हृदय में प्रेम शक्ति को विकसित होने देने में रुकावट डालता है। हम जैसे-जैसे अपने बारे में अधिक सोचते हैं, वैसे-वैसे दूसरों के बारे में कम सोचने लगते हैं, और इस राह पर चलते-चलते हम बद से बदतर होते जाते है। अंत में हमारा अहम् एक विशालकाय रूप लेकर हमारे सामने आता है जिससे हम हमेशा से लड़ते रहे है; और अब इस सफ़र के अंत में यह विशाल अहम् बहुत बलवान हो जाता है। लेकिन अगर इस परिपूर्ण राह पर बढ़ते पहले कदम से ही हम इस विशाल अहम् से संघर्ष और लड़ाई करना, उस पर विजय प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह केवल प्रेम शक्ति को बढाने से ही मुमकिन हो सकता है।

प्रेम से मेरा क्या तात्पर्य है? यह एक ऐसा शब्द है जिसे एक अर्थ नहीं दिया जा सकता। दया, नम्रता, अच्छाई, विनम्रता, दयालुता, सुंदरता, जैसे सब गुण उस एक ही चीज़ के नाम हैं। इसलिए प्रेम वो धारा है जो जब उठती है, तो वो एक फव्वारे के रूप में गिरती भी है, और हर नीचे गिरती धारा पुन्य है। किताबों या किसी धार्मिक व्यक्ति द्वारा सिखाये गुणों में वो शक्ति या जान नहीं है क्योंकि उन्हें केवल सीखा गया है; जिस गुण को सीखना पड़े उसमें शक्ति नहीं होती, न ही जान। जो गुण स्वाभाविक रूप से मन की गहराईयों से फूट कर निकलते हैं, जो गुण एक प्रेम के झरने में से उठते हैं, फिर कई अलग पहलुओं की तरह चारों ऒर गिरते हैं, वही गुण असल हैं। एक हिंदुस्तानी कहावत है, 'कि आप के पास कितना धन है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि अगर आपके पास गुणों का खजाना नहीं है, तो वह धन किसी काम का नहीं है।" सच्चा धन वो है जो हरदम बढ़ते हुए प्रेम के झरने की तरह है जिसमें से सब सद्गुण बहते हैं।

- हजरत इनायत खान
"साकी का गिलास" से


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