Where We Are Is Our Temple


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हम जहाँ हैं वही हमारा मंदिर है
- जैक कॉर्नफील्ड द्वारा लिखित ( २७ दिसंबर, २०१७)

अपनी आध्यात्मिक साधना को बढ़ाना वास्तव में अपने मन का विस्तार करने की, धीरे-धीरे अपनी अंतर्दृष्टि और संवेदना के दायरे को बढ़ा कर आखिर अपने पूरे जीवन को उसमें सम्मिलित कर लेने की एक प्रक्रिया है। पृथ्वी पर इस मानव शरीर में होने के नाते, यह वर्ष, आज का दिन, हमारी आध्यात्मिक साधना है।

ऐसा होता था कि पूर्वी आध्यात्मिक साधना को अधिकतर मठों और मंदिरों में भिक्षुओं और ननों द्वारा संरक्षित किया जाता था। सदियों से यूरोप में ज़्यादातर पश्चिमी चिंतनशील साधनाएं एकांत में भी हुईं। हमारे आधुनिक समय में, मठ और मंदिर का इतना विस्तार हुआ है कि उन्होंने दुनिया को खुद में शामिल कर लिया है। हम में से अधिकांश भिक्षुओं और ननों के रूप में नहीं जीएंगे, और फिर भी आम लोगों की तरह, हम भी एक सच्चे और गहन आध्यात्मिक जीवन की चाह करते हैं। यह संभव है अगर हम यह समझें कि हम जहाँ हैं वही हमारा मंदिर है, कि यहां इसी जीवन में जिसे हम जी रहे हैं, हम अपनी साधना को साकार बना सकते हैं।

मुंबई में मेरे पुराने गुरु हमें इस तरह से सिखाते थे। वो शिष्यों को सिर्फ उतने समय तक रहने देते जिसमें वो जीवन और प्रेम के सच्चे अर्थ और सभी चीज़ों से मुक्त होने की एक सच्ची समझ तक न पहुँच जाएं। फिर वो उन्हें यह कह कर घर भेज देते कि, "पड़ोस के लड़के या लड़की से शादी कर लो, अपने ही समुदाय में नौकरी कर लो, अपनी जिंदगी को अपनी साधना बनाओ। "भारत के विपरीत तट पर, मदर टेरेसा (कोलकाता में ) मदद करने वाले सैकड़ों स्वयंसेवकों को यह कह कर घर भेजतीं, "अब जब आप भारत के गरीबों में मसीह को देखना सीख चुके हैं, घर जाओ और अपने परिवार में, अपने गली में, अपने पड़ोस में, उसकी सेवा करो।"

[...] हम सब एक परिवार हैं। यह एक अविभाजित मन की चुप्पी में सबसे सीधे तरीके से महसूस किया जा सकता है। जब मन स्थिर होता है और दिल खुला हुआ, तो दुनिया हमारे लिए अविभाजित है। जैसा कि चीफ सिएटल ने हमारे पूर्वजों को याद दिलाया था, जब उन्होंने अपनी ज़मीन आत्मसमर्पण की थी:

"यह पृथ्वी हमारी मां है। धरती पर जो कुछ भी घटता है, धरती के बेटों और बेटियों पर भी वही गुज़रता है। यह हमें पता है। हम सब जानते हैं कि सभी चीजें एक दूसरे से जुडी हैं, जैसे खून जो एक परिवार को एकजुट रखता है। [...] हमने अपने जीवन के जाले को नहीं बना है, हम तो केवल इसके एक धागे समान हैं। हम इस जाले को जो कुछ भी करते हैं, वही हम स्वयं को भी करते हैं।"

जब दिल अविभाजित होता है, तो हम जिस चीज़ का भी मुकाबला करते हैं, वही हमारी साधना है।

प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से क्या समझते हैं कि हम जहाँ हैं वही हमारा मंदिर है? क्या आप कोई अनुभव बाँट सकते हैं जब आप जिस चीज़ का सामना कर रहे थे, उसे आप अपनी साधना की तरह देख सके हों? आपको एक अविभाजित मन बनने में किस चीज़ से मदद मिलती है?

जैक कॉर्नफील्ड की किताब, “ए पथ विद हार्ट” (दिल के साथ राह) से उद्धृत।
 

Excerpted from Jack Kornfield's book, A Path with Heart


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