My Misgivings About Advice

Author
Parker Palmer
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Image of the Weekसलाह के बारे में मेरा अविश्वास
-- पार्कर पामर द्वारा लिखित (२५ जनवरी, २०१७)

सलाह के बारे में मेरा अविश्वास पैंतीस साल पहले नैदानिक अवसाद के मेरे पहले अनुभव के साथ शुरू हुआ। जिन लोगों ने मेरी सहायता करने की कोशिश की उनके इरादे नेक थे। लेकिन, ज़्यादातर, जो वो लोग करते, वह मुझे और ज़्यादा उदासी महसूस कराता था।

कुछ लोग प्राकृतिक इलाज की बात करते: "तुम बाहर निकल कर सूर्य की किरणों और ताज़ी हवा का आनंद क्यों नहीं लेते? सब कुछ खिला हुआ है और यह एक कितना खूबसूरत दिन है!” जब आप​ खिन्न होते हो, आपको बौद्धिक रूप से पता होता है कि यहां सब कुछ कितना सुंदर है। लेकिन आप उस सुंदरता का एक कण भी महसूस नहीं कर सकते क्योंकि आपकी भावनाऐं मर गयी हैं - और उस अंतर की याद दिलाया जाना निराशाजनक है।

अन्य सहायता करना चाहने वाले लोगों ने मेरे आत्म-विश्वास को बढ़ाने की कोशिश की: "तुम खुद पर इतने हावी क्यों हो? तुमने इतने सारे लोगों की मदद की है।” लेकिन जब आप उदास होते हैं, तो जो एक आवाज़ आप सुन सकते हैं वो ऐसी है जो आप से कह रही है आप एक बेकार धोखेबाज़ व्यक्ति हैं। ऐसे प्रशंसा भरे शब्दों ने मुझे ऐसा महसूस करा के कि मैंने एक और इंसान को धोखा दे दिया, मेरी उदासी को और भी बढ़ा दिया: "अगर वह जानता कि मैं एक कीड़े जैसा हूँ, तो वह फिर मुझसे कभी बात भी नहीं करता।"

बात यह है। मानव आत्मा सलाह नहीं मांगती, न ही ठीक होना या खुद को बचाना चाहती है। वह चाहती है कि उसे केवल साक्ष्य भाव से देखा जाए - जैसी वो है उसे वैसे ही देखा, सुना जाए और उसका साथ दिया जाए। जब हम एक पीड़ित व्यक्ति की आत्मा की ओर इस गहराई से नत मस्तक होते हैं, तो हमारा सम्मान उस आत्मा के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी संसाधनों को पुष्ट करता है, वो अकेले संसाधन जो उस पीड़ित व्यक्ति को इस स्थिति से बाहर निकलने में मदद कर सकते हैं।

और हाँ, एक बात यह भी है। हम में से बहुत से “मददगार” किस्म के लोग उतना ही या उससे भी ज़्यादा इस बात की फ़िक्र करते हैं उन्हें अच्छे मददगार के रूप में देखा जाए, जितना कि हम इस बात की चिंता करते हैं कि जिस इंसान को मदद चाहिए हम उसकी आत्मा की गहराई तक की ज़रूरतों की देखभाल कर सकें। साक्षी या सहयोगी बन पाने में समय और धैर्य की ज़रूरत होती है, जिसकी आमतौर पर हमारे पास कमी होती है - खासकर जब हम इतनी दर्दनाक पीड़ा की उपस्थिति में होते हैं कि हमारे लिए वहां खड़ा रह पाना भी मुश्किल होता है, जैसे कि हम एक संक्रामक रोग लग जाने के खतरे में हों। हम अपने “ठीक कर देने” के काम को करके, वहां से कटते और चलते बनते हैं, ऐसा सोचकर कि हमने दूसरे व्यक्ति को "बचाने” के लिए जो हम ज़्यादा से ज़्यादा कर सकते थे, वो हमने कर दिया।

और फिर भी, हमारे पास इससे भी अच्छा कुछ है: आत्म उपस्थिति और व्यक्तिगत ध्यान देने के माध्यम से अपने खुद की भेंट देना, वो उपस्थित और ध्यान जो दूसरे की आत्मा को उभरने का न्योता देती है। जैसा कि मेरी ओलिवर ने लिखा है, "यह पहली, सबसे उन्मुक्त और ज्ञानपूर्ण बात मुझे पता है: कि आत्मा मौजूद है और पूरी तरह से ध्यान के द्वारा ही बनी है।”

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं की मानवीय आत्मा केवल यह चाहती है कि उसे साक्षी भाव से देखा जाए, ना कि उसे सलाह दी जाए या उसे ठीक कर दिया जाए? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने केवल साक्षी भाव से देखा हो या आपको साक्षी भाव से देखा गया हो? गहरी संवेदना के सामने आपको साक्षी भाव में बने रहने में किस चीज़ से मदद मिलती है?

इस ब्लॉग के कुछ अंश।
 

Excerpted from this blog.


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