Who Me, Stealing?


Image of the Weekक्या मैं , चोरी करता हूं?
द्वरा कॉन्स्टेंस हबश
जब मैं योग शास्त्र के, पांच नैतिक सिद्धांतों को, पढ़ाता हूं, तब मैं एक सिद्धांत, “अस्तेय” के व्यवहारिक उपयोग समझाने में अक्सर अटक जाता हूँ | इसको ”चुराना नहीं ” के नाम से जाना जाता है| ज्यादातर लोगों को लगता है, यह तो बहुत आसान है| अवश्य ही मुझे पता है की चुराना नहीं है, परन्तु अस्तेय के सूक्ष्म एवं कम स्पष्ट उपयोग ,जीवन के हर पहलु में नज़र आते हैं, ध्यान में, चाहे ध्यान प्रक्रिया से परे |
चोरी करने का मतलब, वेबस्टर के शब्दकोष के अनुसार है “ लेना या हड़पना, बिना इजाज़त के, बेईमानी की नियत से, चुप चाप, या गुप्त या छलपूर्वक “ | हम चुराते हैं जब हम में कुछ खरीदने की क्षमता नहीं होती, कुछ लिख पाने के क़ाबलियत नहीं होती ( विचार एवं मुद्राधिकार के मामलों में) या जब हम मान लेते हैं की हम किसी चीज़ को इमानदारी से हासिल नहीं कर पायेंगे| हम चोरी करते हैं, जब हम अपने आप में एक कमी या खालीपन महसूस करते हैं, चाहे पेट की हो, हमारी अलमारी की हो या हमारे गौरव की हो , और हम हताश हो कर उसे पाने की कोशिश करते हैं | चोरी करने में सभी चीज़ें शामिल होती हैं, खाने के लिए रोटी चुराने से लेकर , किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति के कार्य के तरफ़ से ध्यान को नियतन मोड़ देना |
शुक्र है, हम में से, कुछ ने ही रोटी चुराई होगी, पर पूर्व में, जाने अनजाने में , हम कई बार चुराने में शामिल हुए होंगे | अक्सर ऑफिस से आते हुए हम वहां के पेन, पेंसिल उठा लाते हैं, या कई बार किसी दुकान में बिल पे दस्तखत करते वक़्त उनका पेन हम अपने पर्स में रख लेते हैं|विद्यालाय में कई बार हमने कई दस्तावेजों की नक़ल (photo copy) बिना लेखक की इजाज़त के कराई होगी, या अपने निबंधों में, किसी लेखक की पंक्तियाँ , बिना उसका नाम बताये, शामिल की होंगी| हालाँकि ये बहुत ही छोटी गलतियाँ हैं, और आसानी से व्यवहार से हटाई जा सकती हैं, पर फिर भी ये चोरी करने के क्रम में ही आती हैं, और अस्तेय को पूर्ण एवं आतंरिक रूप से अपनाने के लिए व्यवहार से हटानी चाहियें|
परन्तु” चुराना नहीं ” के जो ज्यादा सूक्ष्म और कम प्रगट होने वाले पहलु हैं वे बहुत ही चुनौतीपूर्ण हैं, ओंर अक्सर हमें उनके स्वरुप को देखना , सीखना पड़ता है, ताकि हम उनको बदल सकें| बहुधा, किसी प्रकार की भी चोरी, हमारे अंदर, गहरी पैठ जमाये, भय से ही उपजती है| चाहे हमें अपना अगला भोजन नहीं मिलने की चिंता हो, या अपनी अपर्याप्तता का भय हो, हमें अपने भय के वास्तविक कारण को समझ कर उसका निवारण करना होगा, ताकि हम अस्तेय को पूर्ण अपना सकें|
तृष्णा , भी एक प्रकार की चोरी ही है, और पूरे विश्व में बहुत फैली है, और उसका ही नतीजा हम देखते हैं की हमारे जंगल ख़त्म होते जा रहे हैं, गरीबों को भूखा रहना पड़ता है, आसमान में पर्यावरण का नाश होता है, और हमारी नदियाँ एवं नाले, गन्दगी एवं प्लास्टिक, से भरे पड़े हैं| हमें शायद आभास नहीं होता , कि हम में कितनी तृष्णा है, क्योंकि संचार माध्यमों (media) के द्वारा हमें हर क्षण एहसास दिलाया जाता है, की हम में कमी है, और यह कमी वस्तुओं के उपभोग एवं कामना से ही पूर्ण होगी| जिस हवा से हम सांस लेते हैं, से लेकर जो वाहन हम चलाते हैं, हर चीज़ के उपयोग में पर्यावरण का नाश ज्यादा करते हैं, उस पर्यावरण को पूरक करने के बजाए | स्वामी सच्चिदानंद ने कहा है, अपनी जरूरत से ज्यादा सामान खरीदना भी एक प्रकार की चोरी है , “क्योंकि हम और लोगों को उसके इस्तेमाल से वंचित करते हैं “|
जब हम अस्तेय शब्द की गहराई में जाते हैं , तो हमारी समझ में आता है कि सिर्फ ”चोरी नहीं करना “ ही इसका अभिप्राय नहीं है| उदारता , अस्तेय का मूल है| हम देते हैं , देने की ख़ुशी के लिए, ना कि सिर्फ उसे पाने के लिए, जो हमें चाहिए| जब हम “ जो प्राप्त है वो ही पर्याप्त है” की दृष्टि से देखते हैं, तो हम पाते हैं कि हमारे पास औरों को देने के लिए बहुत कुछ है| फिर चाहे हम वो वस्तुएं देते हैं, जिनकी हमें जरूरत नहीं है, या अपने समय, शक्ति या प्यार का दान देते हैं| उदार बनना एवं औरों की परवाह करना ही अस्तेय के मूल में है|
अस्तेय में पूर्ण सन्निहित, चोरी नहीं करने वाले, हम संतुष्ट एवं शांत बन जाते हैं| एक शांत मन ही हमारा सबसे बड़ा धन है|
मनन के लिए बीज प्रश्न: “ चुराना नहीं “ आपके लिए क्या मायने रखता है| क्या आप अपनी एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं, जब आप “ चुराना नहीं “ के सूक्ष्म अभिज्ञता (awareness) तक पहुँच पाए हों? अपनी पर्याप्तता का एहसास मानने के लिए आपको किस चीज़ से सहयते मिलती है|
 

Connie L. Habash is a yoga teacher, and seeker.  The excerpt above is adapted from this blog.


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