Radical Amazement


Image of the Weekमौलिक आश्चर्य

-- रैबाय अब्राहम जाशुआ हैशल (६ मई, २०१५)

ईश्वर के अर्थ और उपासना के महत्व को समझने की हमारी क्षमता को दबाने का सबसे अच्छा तरीका है वास्तविकता से मूँह फेर लेना। जीवन के इस अवर्णनीय आश्चर्य की ओर उदासीनता ही पाप की जड़ है। ताज्जुब या मौलिक आश्चर्य ही एक धार्मिक व्यक्ति के इतिहास और प्रकृति की ओर होने वाले रवैये की मुख्य विशेषताऐं हैं। वास्तविकता से मूँह फेर लेना, यह समझना कि घटनाऐं स्वाभाविक रूप से घट रही हैं - यह रवैया उसकी आत्मा के लिए अंजाना है। किसी अद्भुत घटना के होने के कारण के बारे में कुछ अनुमान लगा लेना, उसके चरम आश्चर्य से मेल नहीं खाता। वह जानता है कि प्राकृतिक प्रक्रियाओं के क्रम को नियंत्रित करने के लिए कुछ नियम हैं; उसे घटनाओं की नियमितता और उनके क्रम में होने का आभास है। फिर भी, यह जानकारी उसकी इस बात पर निरंतर आश्चर्य की भावना को कम नहीं कर पाती कि असल में कोई वास्तविकता है।

जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता है, विस्मय की भावना में कमी आने लगती है। यह गिरावट हमारी मनस्थिति का एक भयानक लक्षण है। मानव जाति जानकारी के अभाव में नष्ट नहीं होगी; लेकिन सही मूल्यांकन के अभाव में ज़रूर हो सकती है। हमारी खुशियों की शुरुआत इस बात पर निर्भर करती है कि आश्चर्य के बिना यह जीवन बेकार है। हममें कमी विशवास करने की इच्छा की नहीं बल्कि आश्चर्य करने की इच्छा की है।

दैवी जागरूकता की शुरुआत आश्चर्य से होती है। मनुष्य अपने उच्चतर अज्ञान का जैसे इस्तेमाल करता है, यह उस का परिणाम है। इस तरह की जागरूकता के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है परंपरागत धारणाओं और घिसे-पिटे मानसिक विचारों के साथ हमारा समझौता। विस्मय या मौलिक आश्चर्य, शब्दों और विचारों के साथ असामंजस्य की स्थिति, ही इसलिए असली जागरूकता पाने के लिए परम आवश्यक है।

मौलिक विस्मय का प्रभाव इंसान के किसी भी और काम से कहीं ज़्यादा है। जब कि धारणा या अनुभूति का उद्देश्य सिर्फ वास्तविकता के कुछ गिने-चुने खंड हैं, वहीं मौलिक विस्मय संपूृर्ण वास्तविकता से सम्बन्ध रखता है; न केवल उससे जिसे हम देख सकते हैं, बल्कि हमारी देखने की क्रिया से और साथ ही खुद हमसे भी, उससे जो देखता है और जो अपनी देखने की क्षमता पर हैरान होता है।

किसी चीज़ के अस्तित्व की भव्यता या रहस्य मन के लिए कोई एक विशेष पहेली नहीं है, उदाहरण के लिए, ज्वालामुखी के फटने का कारण। इसे जानने के लिए हमें तर्क की हद तक जाने की ज़रुरत नहीं है। भव्यता या रहस्य ऐसी चीज़ है जिसके साथ हमारा पाला हर जगह और हर समय पर पड़ता है।

यहां तक कि सोचने का काम भी हमें चक्कर में दाल देता है, जैसा कि हर समझने लायक तथ्य होता है, सिर्फ एक तथ्य होने के कारण, बेकार के अकेलेपन में डूबा हुआ। क्या तर्क-वितर्क में, धारणा में, स्पष्टीकरण में रहस्य मौजूद नहीं है?
ऐसा कौनसा फार्मूला है जो हमारे सोच पाने की पहेली को समझा सके और हल कर सके?

-- रैबाय अब्राहम जाशुआ हैशल

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: मौलिक आश्चर्य से आप क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँटना चाहेंगे जब आपने मौलिक आश्चर्य का अनुभव किया हो? आपको आश्चर्य की भावना को जीवित रखने में किन चीज़ों से मदद मिलती है?

रैबाय अब्राहम जाशुआ हैशल पोलैंड में जन्मे अमेरिकी रैबाय थे और 20 वीं सदी के प्रमुख यहूदी धर्मशास्त्री और दार्शनिकों में से एक थे। हैशल अमरीका की यहूदी थीओलोजिकल सेमिनरी में यहूदी रहसयवाद के प्रोफ़ेसर थे और उन्होंने यहूदी दर्शन पर बहुत सी पुस्तकें लिखीं, वे अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन में भी सक्रिय थे।
 

Rabbi Abraham Joshua Heschel was a Polish-born American rabbi and one of the leading Jewish theologians and Jewish philosophers of the 20th century. Heschel, a professor of Jewish mysticism at the Jewish Theological Seminary of America, authored a number of widely read books on Jewish philosophy and was active in the American Civil Rights movement.


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