The Great Tragedy of Speed

Author
David Whyte
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Image of the Weekरफ़्तार की महान त्रासदी

-डेविड वाइट (२४ अप्रैल, २०१३)

काम में रफ़्तार होने से हमारा कुछ फायदा हो सकता है। रफ़्तार पर ध्यान दिया जाता है। लोग आपकी तेज़ी की तारीफ़ करते हैं। रफ़्तार अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। रफ़्तार हमें काम से छुटकारा दिलाने में मदद करती है। रफ़्तार का मतलब यह है कि हम जिस ख़ास चीज़ या व्यक्ति के पास हैं, हम उससे वास्तव में कोई संबंध नहीं रखते, और इसलिए रफ़्तार हमें ऐसा महसूस कराती है जैसे हम अपनी कार्यक्षेत्र के दर्जे से कहीं ऊपर हैं।

जब हम अपने काम में लीन हो जाते हैं, रफ़्तार ही हमारी सबसे बड़ी रक्षक बन जाती है, रुककर चीज़ों पर ध्यान देने की क्षमता से बिलकुल हटकर। अगर हम वास्तव में देख पाएं कि हम क्या कर रहे हैं और हम क्या बन गये हैं, तो हमें मालूम होगा कि शायद हम उस ठहराव और उसके साथ आने वाले आत्म-मूल्यांकन को झेल ही नहीं पाएँगे। इसलिए हम रुकते ही नहीं, और जितना तेज़ हम चलते हैं, उतना ही रुकना मुश्किल हो जाता है। जब किसी भी तरह की जिम्मेवारी सामने आती है तो हम बस चलते रहते है।

रफ़्तार एक चेतावनी भी है, एक ऐसा धड़कता हठी संदेश कि जैसे हम किसी चट्टान के सिरे पर खड़े हैं, एक निश्चित चेतावनी भी कि मानो हम किसी और की ज़िंदगी जी रहे हैं और किसी और का काम कर रहे हैं। लेकिन रफ़्तार हमें रुकने से होने वाली तकलीफ से बचाती है; रफ़्तार एक ऐसी मरहम बन जाती है, एक देन, हमें अनजाने अपने आप को बताने का तरीका कि हम असल में अपनी ज़िन्दगी में हिस्सा नहीं ले रहे हैं।

"अस्तित्व की जटिलताओं और जिम्मेदारियों के जवाब में इस्तेमाल की जा रही गति की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि बहुत जल्द ही हम ऐसी किसी वस्तु या ऐसे किसी व्यक्ति को जो हमार्री गति से नहीं चल रहे हैं, पहचान भी नहीं सकते हैं। हम केवल उन्हीं को देख सकते हैं जो हमारी ही रफ़्तार से इस दुनिया के चक्कर में घूम रहे हैं और सिर्फ उन्हीं को जो ठीक हमारी तरह बहुत जल्दी में हैं। इस रफ़्तार की वजह से हमें सब धुंधला दिखाई देने लगता है, और जल्द ही हम एक ऐसी बेहोशी का शिकार हो जाते हैं जिसमें जो लोग आमतौर पर हमारी इंसानियत के भागीदार होने चाहिएं, वो भी एक-एक कर के हमारे मन से दूर हो जाते हैं। हम अपने साथ काम करने वाले उन लोगों पर ध्यान देना बंद कर देते हैं जो हमसे कम रफ़्तार पर चल रहे हैं, और हम अपने काम के पीछे चल रहे महान पर धीमे चलते लक्ष्य को भूलने लगते हैं। विशेष रूप से हम अपने जीवन के बीच बनती उन खुलासा लहरों को भुला देते हैं जो हमारे मूल चरित्र का सूचक है।

हमारी व्यक्तिगत ज़िंदगी में, रफ़्तार का गुलाम बन जाने की वजह से हमें वो सब लोग दिखाई देनी बंद हो जाते हैं, जैसे परिवारजन, खासतौर पर हमारे बच्चे, या जो बीमार या कमज़ोर हैं, जो हमारी रफ़्तार से इस दुनिया में दौड़ नहीं रहे हैं, और जिनका संकल्प हमारी तरह पक्का नहीं है। उसी निश्चय से हम अपने खुद के उन हिस्सों को भी भुला देते हैं जो कुछ कमज़ोर हैं, हमारी उन खामियों को जो असल में हमारे अस्तित्व को जान देती हैं। हम भूल जाते हैं कि हमारे मन की शान्ति उन धीमी और धैर्य से चलने वाली चीज़ों से होने वाले हमारे सम्बन्ध पर निर्भर है जो कि हमारे काम की ज़रूरतों और पागलपन से कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं।

इस सप्ताह के कुछ मूल प्रश्न : "आपका ज़िन्दगी की रफ़्तार से कैसा सम्बन्ध है? यह विश्वास करने के लिए कि हमारे पास बहुत समय है, हमें क्या करना होगा? क्या आप कोई व्यक्तिगत कहानी बताना चाहेंगे जो आपके किसी ऐसे अनुभव से आई हो जब आपने ऐसा माना हो कि,"मेरे पास बहुत समय है?"


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