Lessons From 25 Years of Meditating

Author
Yogi Mccaw
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25  वर्ष  की ध्यान साधना की  सीख
- योगी मैकौ २ फरवरी, २०१३)
 
मैंने अपनी ज़िंदगी के लगभग 25 वर्शों में करीब हर दिन ध्यान साधना की, और कुछ दिन तो घंटों तक ... मैंने यह पाया:
1.   ध्यान साधना कष्टमय नहीं  है…जैसा कि महात्मा बुद्ध ने बताया, हालाँकि हर व्यक्ति कष्ट से गुज़रता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कष्ट हमें निर्वाण तक पहुंचा देगा। ऐसा नहीं होता। एक कष्ट हमें केवल दूसरे कष्ट तक ही पहुंचाता है। बस, वह और कहीं नहीं जाता। इसलिए अपने कष्टों को प्रकाशित मत करो, या यह मत सोचो कि क्योंकि तुम्हारे घुटने बैठते-बैठते दुखने लगते हैं, तो तुम ध्यान साधना में बहुत 'प्रगति' कर रहे हो। फ़िर भी बहुत से लोग इसी तर्क को सही समझते हैं। इससे बेहतर यह है कि आप अपने घुटनों का ख़याल रखें।    
 
2.   अगर आप ध्यान साधना जीवन में कुछ पाने के लिए कर रहे हैं - चाहे वह ध्यान की गहराइयों तक पहुँचने की चाह ही क्यों न हो, आप इस बात को ठीक से समझ ही नहीं रहे हैं, और शायद अपनी पूरी साधना बेकार कर रहे हैं। ध्यान की दुनिया, अहम् की उपलब्धियों से संचालित दुनिया से एकदम अलग है। आमतौर पर, हम हर काम कुछ पाने के लिए करते हैं। यह स्वाभाविक है। अगर आप असल में ध्यान साधना करते हैं तो आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं, और कुछ भी नहीं पा रहे हैं। विडम्बना यह है कि असल में ध्यान  करने के लिए हमें इसी मानसिक अवस्था में रहने की आवश्यकता है। यहाँ आप "यह पाने के लिए वो करने" की मानसिक स्थिति में नहीं हैं। जबकि यह इतना साधारण मालूम होता है, ज़्यादातर लोग बहुत वर्षों तक ध्यान जैसी चीजों में लगे रहने के बावज़ूद भी इस महत्त्वपूर्ण खोज तक पहुँच ही नहीं पाते। जो बेशक वो ध्यान में जाने के लिए ही कर रहे हैं।
3.    इस बात का समझना नामुमकिन है कि किसी व्यक्ति को ध्यान साधना क्यों करनी चहिये. हाँ, शांति, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी केन्द्रित रह पाने का भाव, और विस्तृत दृष्टिकोण, ये सब चीज़ें ध्यान साधना का परिणाम बन सकती हैं, लेकिन असल में ये सिर्फ उसके दुष्प्रभाव हैं। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि "कुछ् पाने के लिए कुछ करने" के जिस अद्भुत अस्तित्व में हम आज रह रहे हैं उसमें से निकलने का असल में यही एक तरीका है। वह विचार ही अपने आप में अनुभव करने लायक है। पर, याद रहे, यह वास्तव में कुछ करने से नहीं आता। यह तो बस ऐसे ही है। यह हमें आखिरी सीख की ओर ले जाता है –
 
4.   कि ध्यान साधना हमारी प्राकृतिक अवस्था है। हमारा ध्यान साधना करने का एक ही कारण है, वो यह कि हम अपनी प्राकृतिक अवस्था में नहीं रहते हैं। एक पुराना ज़ेन विरोधाभास है जो कहता है कि सिर्फ ज़ेन गुरू ही साधारण है. गुरु असाधारण लगते हैं क्योंकि वे और सबसे अलग मालूम होते हैं। लेकिन रहस्य की बात यह है कि वह अलग हैं ही नहीं, वह तो बस आम हैं, एकदम सहज। फर्क इसलिए लगता है क्योंकि और सब लोग सोच, चिंता, और "कुछ पाने के लिए कुछ करने" के अस्वाभाविक मनःस्थिति में जीते हैं। तो ज़ेन गुरू असाधारण नहीं हैं - वो तो बिलकुल साधारण है। फर्क सिर्फ इतना है कि बाकी सब लोग साधारण नहीं हैं।  
 


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