क्रोध के बीज का नाश
- स्वामी विवेकानंद ( 12 नवंबर, 2012)
जब मैं क्रोधित होता हूं तो मेरा पूरा दिमाग क्रोध की एक लहर जैसा बन जाता है। मैं उसे महसूस कर सकता हूँ, देख सकता हूँ, छू सकता हूँ, आसानी से उसका इस्तेमाल कर सकता हूँ, उससे भिड़ भी सकता हूँ; लेकिन मैं उस क्रोध पर तब तक जीत नहीं पा सकता जब तक मैं उसके मूल कारण तक नहीं पहुँच जाता। जब कोई व्यक्ति मुझे कोई कठोर बात कहता है, तो मुझे ऐसा महसूस होने लगता है जैसे मेरा शरीर गर्म होने लगा है, और वो कठोर बातें वह तब तक कहता रहता है जब तक मैं पूरी तरह क्रोधित नहीं हो जाता और अपने आप को भूल जाता हूँ, और मैं और मेरा क्रोध जैसे एक हो जाते हैं। जब उस व्यक्ति ने मुझ से भला-बुरा कहना शुरू किया, मैंने सोचा कि," मुझे बहुत गुस्सा आने वाला है"। तब तक क्रोध और मैं अलग-अलग चीज़ थे; लेकिन जब मैं पूरी तरह क्रोधित हो चुका होता हूँ तो मैं और क्रोध मानो एक हो जाते हैं।
इन भावनाओं का बीज लगने, जड़ पकड़ने और पनपने से पहले ही कुचल देना ज़रूरी है, इससे पहले की हमें एहसास भी हो कि ये भावनाएं हम पर असर कर रहीं हैं। ज़्यादातर लोगों को तो क्रोध की इन सूक्ष्म अवस्थाओं का ज्ञान भी नहीं होता कि कब ये अवस्थाएँ हमारे अंतःकरण से उभर कर निकल आती हैं। जब एक बुलबुला झील के तल से उभर रहा होता है, हम उसे देख नहीं सकते, बल्कि हम उसे तब तक नहीं देख सकते जब तक वह पानी की सतह तक नहीं पहुँच जाता; वो जब सतह पर आकर फट जाता है और एक छोटी सी लहर बना जाता है, तभी हमें उसके होने का अहसास होता है।
इन लहरों से जूझने में हम तभी कामयाब होंगे जब हम उन्हें शुरूआत में ही पकड़ पाएँगे और जब तक हम उन्हें बड़ा होने से पहले ही पकड़ पाने और वश में कर लेने में सफल नहीं हो जाते, तब तक क्रोध को पूरी तरह से जीत पाना संभव नहीं है। क्रोध के आवेग को काबू में लाने के लिए उसे जड़ पकड़ने से पहले ही ख़त्म कर देना ज़रूरी है; तभी हम उसके बीज को जला कर राख कर पाएँगे। जैसे भुने हुए बीज को ज़मीन पर बोने से पौधा पैदा नहीं हो सकता, वैसे ही क्रोध भी उत्पन्न नहीं हो पाएगा।
--स्वामी विवेकानंद, "योगा अफोरिस्म्स"
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: What does frying the seeds of anger mean to you? How can we control our passions "at their very roots?" Can you share a story that brings out an experience you've had with frying the seeds of anger?
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