The Act of Giving is the True Gift

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Image of the Weekदेने की क्रिया ही सच्ची भेंट है

-- अज्ञात लेखक (२५ फ़रवरी, २०१५)

एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य में, प्रसिद्ध योद्धा, अर्जुन, अपने दिव्य सारथी कृष्ण से पूछते हैं कि इस राज्य में सबसे बड़ा दाता कौन है। कृष्ण बताते हैं कि, “कर्ण ही इस साम्राज्य में बेशक उदारता का सबसे बेहतरीन उदाहरण है," यह जवाब अर्जुन को परेशान कर देता है। कर्ण युद्ध के मैदान में उनके सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वियों में से एक है। वह भौंहें चढ़ा लेते हैं और कुछ नहीं कहते। कृष्ण अर्जुन की चढ़ी हुई भौंहें और उनकी आंखों में प्रतिस्पर्धा की चमक देखकर मन ही मन में मुस्कुराते हैं। यह विषय कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है, लेकिन कुछ दिनों के बाद, कृष्ण एक कुशल परीक्षण ढूँढ निकालते हैं।

जब एक शाम वो दोनों एक साथ सवारी कर रहे थे तो कृष्ण ने अर्जुन से पूछा, "क्या तुम उन दो पहाड़ों को देख रहे हो?" जैसे अर्जुन अपनी निगाहें उस तरफ घुमाते हैं, तो दूर वो ऊंंची पहाड़ियां झिलमिलाने और चमकने लगती हैं। वो दोनों पहाड़ ठोस सोने में बदल जाते हैं। कृष्ण कहते हैं, "अब तुम्हारे लिए एक काम है। तुम्हें तलहटी में रहने वाले सब गरीब ग्रामीणों के बीच सोने के इन दोनों पहाड़ों को बांटना होगा। जब तुम इसका कण-कण बाँट चुको तो मुझे बताना।”

अपनी परोपकारी क्षमताओं के द्वारा कृष्ण और संसार को प्रभावित करने के इस अवसर से उत्साहित होकर अर्जुन सभी ग्रामीणों को बुलाते हैं और धूम-धाम से उन्हें संबोधित करते हैं, “ध्यान से सुनो, क्योंकि मैं खुशखबरी लेकर आया हूँ। मैं आप सभी के बीच सोने के इन दोनो शानदार पहाड़ों को बाँटूँगा।” आश्चर्य और खुशी से दर्शकों की सांस थम जाती है, वे महान योद्धा अर्जुन की प्रशंसा के गीत गाने लगते हैं। इस प्रशंसा से उत्स्साहित हुए अर्जुन सोने को इकठ्ठा करने और बाँटने का बड़ा प्लान बनाना शुरू कर देते हैं।

बिना एक मिनट भी खाना, पानी, आराम या सोने के लिए रुके, दो दिन और दो रात वो लगातार पहाड़ से सोना खोदते रहते हैं। लेकिन फिर भी, उन्हें हैरानी और निराशा हुई कि पहाड़ों में अभी भी कोई फर्क नहीं पड़ा। वो जितना खोदते वो उतने ही बाकी रह जाते। बहुत थक जाने के बाद वे कृष्ण के पास गए। “और खोदने से पहले मुझे कुछ दिन आराम करना होगा,” उन्होंने थक कर कहा।

जवाब में कृष्ण नें कर्ण को अपने पास बुलाया। “क्या तुम वो दो पहाड़ देख रहे हो?” कृष्ण ने कर्ण से पूछा। “जी हाँ,” उस महान योद्धा ने जवाब दिया। “तुम्हें तलहटी में रहने वाले सब गरीब ग्रामीणों के बीच इन दोनों पहाड़ों को बांटना होगा। जब तुम इसका पत्थर-पत्थर बाँट चुको तो मुझे बताना।” कर्ण ने बिना किसी हिचकिचाहट के उसी क्षण पास से गुज़र रहे दो गांव वालों को बुलाया। “क्या तुम वो दो पहाड़ देख रहे हो?” कर्ण ने उनसे पूछा। “जी हाँ” उन्होंने जवाब दिया। “सोने के पहाड़ अब तुम्हारे हैं, उनका जो चाहे करो,” कर्ण ने चढ़ते सूरज की सी उज्ज्वल मुस्कान के साथ कहा। और बड़ी आसानी से ये शब्द कहकर, उन्होंने कृष्ण के सामने शीश झुकाया और वहां से चले गए।

अर्जुन ये सब देखकर हैरान हो गए। कृष्ण उनकी और मुड़े और बहुत ने प्यार और गंभीरता भरी आवाज़ में बोले, “अर्जुन - तुम्हारे मन में उस सोने की बहुत अधिक कीमत थी, और तुम मन ही मन उससे आकर्षित थे। देने के विषय में तुम्हारा देखने का तरीका साफ़ नहीं था। तुमने योजना बनाई और सोने को इस तरीके से बाँटने की कोशिश की जैसे तुम्हें लगा कि इसे पाने की योग्यता किसमें है। लेकिन इस तुच्छ हिसाब-किताब ने तुम्हारे मन को थका दिया, और समय के साथ तुम ये सोचने पर मज़बूर हो गए कि पहाड़ों की प्रचुरता तुम्हारे अपने बुद्धि, मन और हाथों की क्षमता से कहीं अधिक है।” अर्जुन ने मौन होकर उन शब्दों की सच्चाई को अपने मन की गहराई में उतार लिया।

“और कर्ण ने क्या किया?” अर्जुन ने आखिर पूछने की हिम्मत की। “कर्ण के लिए उस सोने का कोई मूल्य नहीं था,” कृष्ण ने आसानी से जवाब दिया, “उसके लिए असली भेंट सोना नहीं, बल्कि उसे देने का काम था। उसे कोई हिसाब-किताब करने की ज़रूरत नहीं थी, न ही उसे वापसी में आभार या बढ़ाई पाने की चाहत थी। उसने सब कुछ साफ दिल और दिमाग से दिया, और देने के बाद वो अपने अगले पल की ओर बढ़ गया। और प्रिय अर्जुन, यही जागरूकता की राह पर चलने वाले इंसान की सच्ची निशानी है।”

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं कि भेंट देने की योजनाएं बनाने से देने की क्रिया ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है? क्या अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँटना चाहेंगे जहाँ भेंट देने की योजना में और भेंट देने की क्रिया में अंतर आपको साफ़ दिखाई दिया हो? आप “बिना योजनाएं बनाए देने” और “जागरूकता से देने” में सामंजस्य कैसे बना सकते हैं?


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