Social Intelligence

Author
Daniel Goleman
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Image of the Week सामाजिक बुद्धि
डैनियल गोलमन (2 जनवरी, 2013)
 
एक दिन, मिडटाउन मेन्हैटन मे होने जा रही मीटिंग में समय पर पहुँचने के लिए मैं कोई छोटा रास्ता ढूंढ रहा था। तो मैं एक बड़ी ऊंची ईमारत के प्रांगण में यह सोचकर घुस गया की अगर मैं दूसरी ओर स्थित दरवाज़े से निकल बाहर जाऊं तो मैं वह रास्ता जल्दी पार कर पाउँगा।  


पर जैसे ही मैं उस बिल्डिंग की लॉबी तक पहुंचा, जिसके चारों तरफ लिफ्टें लगी हुई थीं, एक वर्दीधारी गार्ड मेरे पास आ धमका, और बहुत गुस्से में चिल्लाने लगा," तुम इस रास्ते से नहीं जा सकते!"


"वो क्यों?"मैंने हैरानी से पूछा।


"प्राइवेट प्रॉपर्टी! यह गैर-सरकारी संपत्ति है!" ज़ाहिर तौर पर उत्तेजित, उसने चिल्लाकर कहा।


मालूम होता है, मैं अनजाने में एक अचिन्हित (अन्मार्कड) सुरक्षा ज़ोन मैं घुस गया था। मैंने काफी अस्थिर आवाज़ से ये तर्क देने की कोशिश की, "अगर दरवाजे पर 'यहाँ घुसना मना है' का बोर्ड लगा हो तो अच्छा रहेगा।" 


मेरे इस कथन ने उस गार्ड को और भी नाराज़ कर दिया। वह चिल्लाया," निकलो! बाहर निकल जाओ यहाँ से!"

घबराकर, मैंने जल्दी से पीछे की ओर कदम बढ़ाए, और अगले कई चौराहों तक उस गार्ड का गुस्सा मेरे मन में गूंजता रहा।
 
जब कोई अपनी विषैली भावनाएं हम पर उड़ेल देता है - गुस्से और धमकियों की उत्तेजना में घृणा और तिरस्कार दिखाता है - तो वह व्यक्ति हममें भी उन्हीं दुखद भावनाओं का प्रवाह चला देता है। उनकी ऐसी हरकत के बहुत प्रबल स्नायविक (न्यूरोलोगिकल) परिणाम होते हैं: भावनाएं भी संक्रामक होती हैं। सशक्त भावनाओं को भी हम उसी तरह पकड़ लेते हैं जैसे कि हम सर्दी जुखाम के वायरस से ग्रस्त हो जाते हैं - और हमें भावनात्मक जुखाम की बीमारी लग जाती है।  
 
हर बातचीत का कोई न कोई भावनात्मक रुख होता है। इस दौरान हम और जो कुछ भी कर रहे हों, हम एक दुसरे को पहले से कुछ बेहतर या बहुत अच्छा महसूस करा सकते हैं, या फिर बहुत ख़राब,जैसा कि  मेरे साथ हुआ। उस पल में जो कुछ भी हुआ, उन भावनाओं को हम उसके बाद बहुत समय तक अपने मन में रखते हैं -  जैसे कि एक भावात्मक लाली (या जैसे मेरे साथ हुआ- उत्तेजना की लाली)।


यह अनकहे लेनदेन एक भावात्मक अर्थव्यवस्था को जन्म देते हैं, वो असल आंतरिक लाभ और हानि जो हम किसे खास व्यक्ति के साथ अनुभव करते हैं, या किसी खास बातचीत में, या किसी खास दिन। शाम होने तक जो पूरे दिन हमने भावनाओं का आदान-प्रदान किया है, उसका हिसाब ही काफी हद तक निर्धारित करता है कि हमें क्या लगता है कि हमारा दिन अच्छा रहा या बुरा। 
 


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