The Question Of Being

Author
Adyashanti
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Image of the Weekअस्तित्व का प्रश्न
- आद्याशांति (१२ सितंबर, २०१८)

डेलफाई के ओरेकल के प्रवेश द्वार के ऊपर यह शब्द लिखे थे, “खुद को जानो (Know yourself). ” फिर येशु आये और उन्होंने इस प्राचीन विचार में उसे जल्दी करने और उसे करने के परिणाम जोड़ दिए जब उन्होंने कहा, "यदि आप जो आपके अंदर है, उसे बाहर लाते हैं, तो जिसे आप बाहर लाते हैं वो आपको बचा देगा। यदि आप आप जो आपके अंदर है, उसे बाहर नहीं लाते, तो जिसे आप बाहर नहीं लाते वो आपको नष्ट कर देगा।"

येशु कह रहे हैं कि आध्यात्मिकता गहन काम है, जो गहन नतीजे लाता है। आपका जीवन दुविधाजनक तरीके से संतुलन में खड़ा है, एक बेहोश नींद में चलने वाली अवस्था और खुली आँखों वाले आध्यात्मिक ज्ञानोदय की अवस्था के बीच लड़खड़ाता। यह सच कि ज़्यादातर लोग जीवन को इस तरह नहीं देखते इस बात का साक्षी है कि वो कितनी गहरी नींद और नकारात्मक अवस्था में हैं।

तो यह क्या है जिसे हमें बाहर लेकर आना है?

हम सबके रूपों के अंदर अस्तित्व सम्बन्धी रहस्य है। हमारी शारीरिक उपस्थिति, व्यक्तित्व, लिंग, इतिहास, व्यवसाय, आशाओं और सपनों, आने और जाने की गतिविधियों के अलावा, वहाँ एक भयानक चुप्पी, शांति की एक खाई है जो आकाशीय उपस्थिति से आवेशित है। छोटी-छोटी चीज़ों के साथ होने वाली हमारी सारी उत्सुकता और जुनून होने के बावज़ूद, हम पूरी तरह से अपने मूल में होने वाले इस काल्पनिक सार को नकार नहीं सकते। और फिर भी हम इसकी स्थिरता, इसकी चुप्पी, इसके स्पष्ट खालीपन और चमकदार अंतरंगता से दूर रहने के लिए कुछ भी करते रहते हैं।

अपनी गहराई में हम सभी को संदेह है कि जिस तरह से हम जीवन को देखते हैं उसमें कुछ बहुत गलत है लेकिन हम उसे न देखने का पूरा पूरा प्रयास करते हैं। और जिस तरह से हम अपनी भयंकर हालत से आँखे फेरते रहते हैं वो है अस्तित्व को एक जुनून और नकारने के रोग के माध्यम से - जैसे कि अगर हम सत्य के शुद्ध प्रकाश का सामना और भ्रम के लिए अपनी भयभीत पकड़ को खुलासा कर देंगे तो कुछ भयानक भाग्य हम पर काबू पा जाएगा।

......... हम सभी अस्पष्टता में छिपे हुए पैदा हुए हैं। हम अस्तित्व की पारदर्शिता को एक नन्हे बच्चे की आँखों में पहचान सकते हैं, लेकिन वो चीज़ खुद के बारे में सचेत नहीं है। यह आत्म-जागरूकता की अनुपस्थिति में छिपी हुई है। नन्हे बच्चे अचेतन अस्तित्व की एक जादुई दुनिया में रहते हैं, जबकि वयस्क अहंकारपूर्ण जुदाई और अस्तित्व के नकारत्व में जीते हैं। अस्तित्व के असली प्रभुत्व और संप्रभुता को सुधारना और बहाल करना, आध्यात्मिक जागरूकता से संभव है।

अस्तित्व का प्रश्न ही सब कुछ है। इससे अधिक महत्वपूर्ण या परिणामी कुछ भी नहीं हो सकता - कुछ भी नहीं जहां बहुत नुक्सान होना सम्भव है। अस्तित्व की ओर अचेत रहना अपनी खुद की सच्चाई की ओर सुप्त रहने जैसा है और इसलिए सम्पूर्ण सच्चाई की और सुप्त होने जैसा। चयन आसान है: अस्तित्व की ओर जागृत हो जाओ या एक अंतहीन नींद में सोते रहो।

विचार के लिए के लिए मूल प्रश्न: आप इस धारणा से क्या समझते हैं अस्तित्व के प्रश्न से ज़्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण या परिणामी नहीं हो सकता? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जहाँ आपको अपने जीवन को एक बेहोश नींद में चलने और पूरी तरह खुली आँखों वाली आध्यात्मिक ज्ञान की अवस्था के बीच लड़खड़ाते होने का अहसास हुआ हो ? जो आपकी गहराई में है उसे बाहर लाने में आपको क्या मदद करता है?

आद्याशांति द्वारा लिखित 'द वे ऑफ़ लिबरेशन’ से
 

From 'The Way of Liberation' by Adyashanti


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