Knowledge can be Conveyed, but not Wisdom

Author
Herman Hesse
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ज्ञान दूसरे को दिया जा सकता है, लेकिन बुद्धि नहीं
हर्मन हेस द्वारा लिखित (१७ मई, २०१७)

देखो, मेरे प्रिय गोविंदा, यह मेरे विचारों में से एक है, जिसे मैंने पाया है: बुद्धि को किसी को दिया नहीं जा सकता। वो बुद्धि जिसे एक बुद्धिमान व्यक्ति किसी को देने की कोशिश करता है, हमेशा मूर्खता जैसी मालूम होती है।”

"क्या तुम मजाक कर रहे हो?" गोविंदा ने पूछा। "मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ, मैं तुम्हें वो बता रहा हूँ जो मैंने पाया है। ज्ञान दूसरे को दिया जा सकता है, लेकिन बुद्धि नहीं। यह पाया जा सकता है, यह जिया जा सकता है, इसके द्वारा कहीं पहुंचा जा सकता है, इससे चमत्कार किये जा सकते हैं, लेकिन इसे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता और सिखाया नहीं जा सकता। यह वो है जिसपर मैं, यहां तक कि एक युवा के रूप में भी, कभी-कभी संदेह करता था, जिसने मुझे गुरुओं से दूर कर दिया है।

मुझे एक विचार मिला है, गोविंदा, जिसे तुम फिर मज़ाक या मूर्खता मानोगे, लेकिन वह मेरा सबसे अच्छा विचार है। यह कहता है: हर सच्चाई का विपरीत भी उतना ही सत्य है! यह ऐसे है: किसी भी सच्चाई को केवल तब व्यक्त किया जा सकता है और उसे शब्दों में कहा जा सकता है, जब वह एक - तरफा होती है।

वो सब कुछ एक - तरफा है जिसे विचारों से विचारा जा सकता है और शब्दों से कहा जा सकता है, यह सब एक - तरफा है, सब कुछ सिर्फ आधा, इस सब में पूर्णता, गोलाई, एकता का अभाव है। जब बुद्ध ने दुनिया की अपनी शिक्षाओं के बारे में बात की थी, तो उन्हें इसे संसार और निर्वाण में बाँटना पड़ा था, झूठ और सच्चाई में, दुख और मुक्ति में बाँटना पड़ा था। इसे अलग तरह से नहीं किया जा सकता, जो यह सिखाना चाहता है उसके लिए कोई अन्य तरीका नहीं है। लेकिन खुद दुनिया में, हमारे चारों तरफ और हमारे अंदर क्या है, वह कभी एक- तरफा नहीं होता। एक व्यक्ति या कोई कार्य कभी पूरी तरह से संसार या पूरी तरह से निर्वाण नहीं होता, एक व्यक्ति कभी पूरी तरह से पवित्र या पूरी तरह पापी नहीं होता। यह वास्तव में ऐसा लगता है, क्योंकि हम धोखे के अधीन हैं, जैसे कि समय कोई वास्तविक चीज़ है। समय वास्तविक नहीं है, गोविंदा, मैंने बार-बार ऐसा अनुभव किया है। और अगर समय वास्तविक नहीं है, तो जो अंतराल दुनिया और अनंत काल के बीच में लगता है, पीड़ा और आनंद के बीच में लगता है, बुराई और अच्छे के बीच में लगता है, यह भी धोखा है।"[...]

"यहां इस नाव पर, उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति मेरा पूर्ववर्ती और गुरु रह चूका है, एक साधु, जिसने कई सालों से नदी पर विश्वास किया है, और किसी चीज़ पर नहीं। उसने देखा था कि नदी उससे बात करती है, उसने उस नदी से सीखा, उसने उसे पढ़ाया और सिखाया, नदी उसे एक भगवान जैसी लगती थी, कई सालों तक उसे पता नहीं था कि हर हवा, हर बादल, हर पक्षी, हर झिंगुर भी उतना ही दैवीय है और उतना ही जानता है और उतना ही सिखा सकता है जितना वह पूजित नदी। लेकिन जब यह साधु जंगलों में गया, तो वह सब कुछ जानता था, तुम्हारे और मुझसे ज्यादा जानता था, शिक्षकों के बिना, किताबों के बिना, केवल इसलिए कि उसने नदी पर विश्वास किया था।”

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस धारणा से क्या समझते हैं कोई भी चीज़ जो विचारों के साथ विचारी जा सकती है और शब्दों के साथ कही जा सकती है, वह एक-तरफा है? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने महसूस किया हो कि एक सत्य का विपरीत भी उतना ही सत्य था? ज्ञान हस्तांतरण की बजाए बुद्धमता से जीने में आपको किस चीज़ से मदद मिलती है?

हरमन हेस के सिद्धार्थ, अध्याय 12, से उद्धरित
 

Excerpted from Herman Hesse's Siddhartha, Ch 12: Govinda.


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