The Oppressor and the Oppressed Must Both be Liberated

Author
Nelson Mandela
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Image of the Weekअत्याचारी और शोषित व्यक्ति, दोनों को मुक्त कराना ज़रूरी है
-- नेल्सन मंडेला द्वारा लिखित (३० मार्च, २०१६)

मैं हमेशा से जानता था कि हर इंसान के मन की गहराई में दया और उदारता है। कोई भी किसी दूसरे से उसकी त्वचा के रंग, या उसके हालात, या उसके धर्म की वजह से नफरत करता हुआ जन्म नहीं लेता। लोगों को नफरत करना सीखना पड़ता है, और अगर वो नफरत करना सीख सकते हैं, तो उन्हें प्यार करना भी सिखाया जा सकता है, क्योंकि मानव हृदय में नफरत की बजाए प्यार अधिक स्वाभाविक रूप से आता है। जेल में सबसे खराब समय में भी, जब मेरे साथियों और मुझे हद से अधिक कष्ट दिया जाता था, मैं फिरभी शायद सिर्फ एक पल के लिए किसी एक गार्ड में मानवता की एक किरण देख लेता था, शायद सिर्फ एक सेकेंड के लिए, लेकिन मुझे आश्वस्त करने और मुझे चलते रहने की हिम्म्त देने के लिए इतना ही काफी था। मनुष्य की भलाई एक ऐसी लौ है जिसे छिपाया जा सकता है लेकिन बुझाया नहीं जा सकता।

यह उन लंबे और अकेले वर्षों की बात है जब अपने ही लोगों की स्वतंत्रता के लिए मेरी भूख सभी लोगों की स्वतंत्रता की भूख में बदल गयी, चाहे वो गोर हों या काले। मैं अच्छी तरह से जानता था कि अत्याचारी को भी मुक्त कराना निश्चित रूप से उतना ही ज़रूरी है जितना शोषित इंसान को। वो आदमी जो दूसरे आदमी की स्वतंत्रता छीन लेता है, वो घृणा की कैद में है, वो पक्षपात और संकीर्ण सोच की सलाखों के पीछे कैद होता है। अगर मैं किसी दूसरे की आज़ादी छीन रहा हूँ तो मैं भी पूरी तरह से आज़ाद नहीं हूँ, ठीक वैसे ही जैसे जब मेरी आज़ादी मुझसे छीन ली जाती है तब मैं आज़ाद नहीं हूँ। अत्याचारी और शोषित व्यक्ति, दोनों ही अपनी मानवता से वंचित रह जाते हैं।

जब मैं जेल से बाहर निकला, मेरा यही लक्ष्य था, दीन और अत्याचारी दोनों को आजाद करावाना। कुछ लोगों का कहना है कि अब उस लक्ष्य को हासिल किया जा चुका है। लेकिन मुझे पता है कि ऐसा नहीं है। .. हमने अपनी यात्रा का अंतिम कदम नहीं, बल्कि एक और लम्बे और पहले से भी अधिक कठिन राह पर पहला कदम रखा है। क्योंकि मुक्त होने के लिए केवल अपनी जंजीरों को काटकर फेंक देने की ही ज़रूरत नहीं है, बल्कि इस तरह से जीने की ज़रूरत है जो औरों की स्वतंत्रता का सम्मान कर सके और उसे और बढ़ाने में मदद करे। स्वतंत्रता की ओर हमारी लगन की असली परीक्षा की यह सिर्फ शुरुआत है।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं कि अत्याचार करने वाले को मुक्त करवाना उतना ही ज़रूरी है जितना शोषित व्यक्ति को? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने अत्याचारी और शोषित व्यक्ति दोनों से गहरा सम्बन्ध महसूस किया हो? ऐसा क्या है जिससे आपको औरों की आज़ादी का सम्मान करने और उसे और बढ़ाने में मदद मिलती है?

यह लेख नेल्सन मंडेला की आत्मकथा: “स्वतंत्रता की और लम्बी यात्रा” से लिया गया है।
 

From Nelson Mandela's autobiography: Long Walk to Freedom.


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