The Delight in Exploring Inner Territory

Author
Vimala Thakar
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Image of the Weekआंतरिक क्षेत्र की खोज में आनंद
-- विमला ठाकर द्वारा लिखित (१७ फ़रवरी, २०१६)​

जब तक हम इस विचार से चिपके रहेंगे कि "मेरा मन, मेरा अपना , व्यक्तिगत मन," हममें अच्छा दिखने की एक ज़ोरदार प्रवृत्ति रहेगी। लेकिन अगर हम अपने मन को एक गैर-व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देखते हैं, एक गैर-स्वामित्व के नज़रिए से, केवल अपने मनों को ध्यान से देखते हैं, और यह देखते हैं कि वे कैसे काम करते हैं, तो हम आलोचना के जाल में कम फंसेंगे।

मनोवैज्ञानिक संरचना की ओर चौकस रहने का मतलब यह नहीं है कि हम कहीं गायब हो जाएं और सभी रिश्ते और ज़िम्मेदारियों को त्याग दें। प्रवीणता तो इन रिश्तों की चाल में रह कर, काम करते रहना, एक जिम्मेदार नागरिक की तरह रहना, और अपने मन के खेल की और चौकस रहना है। लेकिन हमें बहुत सतर्क रहना होगा, क्योंकि मन बहुत सूक्ष्म, चतुर, चालों से भरा हुआ है।

क्रोध या ईर्ष्या या लालच की शुरुआत को देख पाने में एक जबरदस्त रोमांच है, जब भावनाएं पूर्णतः विकसित हो जाएं और उनकी हम पर पूरी पकड़ हो, सिर्फ उस समय हम अनजाने न पकड़े जाएं, बल्कि भावनाओं की पहली हल्की सी चाल को हम देख पाएं। वह कहाँ फैलती है, वह हमारे व्यवहार पर क्या असर डालती है? जैसे एक अनजान जंगल को खोजने में आनंद मिलता है, वैसे ही अपने आंतरिक क्षेत्र को खोजने में, प्रतिरक्षा, आलोचना, स्वामित्व की भावना में हलचल हुए बिना ज्वालामुखी को फटते देखने में भी आनंद है।

अगर हमने कभी अपने में क्रोध को सूक्ष्म शुरुआत से पूर्ण विस्फोट तक जाते नहीं देखा है, तो हम हमेशा उसके बल में पकड़े जाएंगे। हम क्रोध के व्यवहार को दबाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन फ़िरभी वो नुकसान देगा और हम उससे मुक्त नहीं होंगे।

प्रतिरक्षा संरचना में हलचल हुए बिना ध्यान देने में अपनी ही समझदारी है। लेकिन सहज प्रवृत्ति होती है प्रतिरक्षा, आलोचना को बीच ले आना, और खुद पर विचार करने की बजाए अपनी दोषमुक्ति, मूल्यांकन पर ध्यान देना [...] सभी स्पष्टीकरण, औचित्य सच हो सकते हैं, लेकिन वे हमें ठीक से देखने नहीं देते कि क्रोध का हमारे शरीर, रिश्तों और हमारे काम पर क्या प्रभाव पड़ता है।

अगर हम किसी भी भावना, क्रोध, भय, ईर्ष्या का पक्ष लेते हैं, तो हम उसे अपना बना लेते हैं, और हम एक ऐसे जीवन को स्वीकार करते हैं जिसमें भावनात्मक असंतुलन जो चाहें, वो सितम ढा सकते हैं।

विचार के लिए मूल प्रश्न: “अपने आप में क्रोध को सूक्ष्म शुरुआत से लेकर पूर्ण धमाके” तक देखने से आप क्या समझते हैं? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आप प्रतिरक्षा की रंरचना में हलचल हुए बिना, किसी भावना के प्रति सजग थे? ऐसी कौनसी साधना है जो आपको ऐसी सजगता में आनंद आने में मदद करती है?

“आध्यात्म और सामाजिक कार्य: एक समग्र दृष्टिकोण" से





 

From "Spirituality and Social Action: A Holistic Approach"


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