What You See Is What You Get

Author
Annie Dillard
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Image of the Weekजो आप देखते हैं, वो आप पाते हैं

मेरी परवरिश पिट्स्बर्ग में हुई थी, 6 या 7 साल कि उम्र में मैं अपना एक सिक्का कुछ इस तरह छुपा देती थी के कोई और उसे ढूंढ निकाले। वह एक विचित्र अनिवार्यता थी । अफ़सोस के अब मुझे ऐसी इच्छा नहीं होती । किसी कारणवश मै सिक्का हमेशा सड़क के किनारे फ़ुटपाथ के एक निश्चित भाग में ही "छुपाती" थी । मै उसे गूलर के पेड़ कि जड़ों के पास लुढ़का देती थी, या फ़ुटपाथ में हुए किसी गड्ढे में दल देती थी । फिर में सड़क के दोनों किनारों से चॉक से रेखाओं द्वारा उस जगह को दर्शाती थी जहाँ वह सिक्का पड़ा है । जब मैंने लिखना सीख लिया उसके बाद मैं रेखाओं पर लिखती थी, " आगे आशर्य है ! ", " पैसे का मार्ग ! ". ये सब करते समय मुझे विशिष्ठ रोमांच का अनुभव होता था, सिर्फ उस पहले व्यक्ति के बारे में सोच कर जिसे यह सिक्का मिलेगा बिना किसी भी प्रकार कि शर्त के, ब्रह्माण्ड कि और से एक निस्वार्थ भेंट । पर मै कभी भी आस -पास नहीं रहती थी। मैं सीधा घर चली जाती थी और फिर उस विषय के बारे कुछ भी नहीं सोचती थी तब तक जब कुछ महीनो बाद मुझे ऐसा करने कि तीव्र इच्छा फिर होने लगती थी ।

अभी तो यह जनवरी का पहला सप्ताह है, और मेरे पास कई बड़ी योजनएं हैं । मैं काफी समय से देखने के बारे में सोच रही हूँ । बहुत कुछ है देकने को, अनखुले उपहार और मुक्त आश्चर्य । दुनिया ऐसे कई बिखरे हुए सिक्कों से भरी पड़ी है जो एक बड़े ही उदार हाँथ द्वारा दिए गए हैं । पर - और ये मुद्दे कि बात है - सिर्फ एक सिक्के में किसे रूचि है ? अगर आप ऐसी ही किसी रेखा पे चलते हुए स्थिर होकर झुके हुए हैं, और आप पानी पे एक हलकी-सी लहर देख पाते हैं और एक छछूंदर के बच्चे को अपनी माँद से निकलते हुए देख पाते हैं, क्या आप इन नज़ारों को केवल एक ताम्बे का सिक्का ही समझकर अपने पुराने रास्ते पर चल पड़ेंगे ? ये सचमुच भयानक निर्धनता है के कोई इतना कुपोषित और थका हुआ हो के झुक के एक सिक्का भी न उठा सके । पर अगर आप स्वस्थ निर्धनता और सरलता विक्सित करते हैं, ताके उस एक ही सिक्के को ढूंढने से आपका दिन बनजाये, तब, क्योंकि ये दुनिया ऐसे सिक्कों से भरी पड़ी है आपने आपनी निर्धनता से जीवनभर के लिए ख़ुशी के दिन खरीद लिए हैं । यह इतना सरल है । आप जो देखते हैं वह पाते हैं ।

… पिछले सितम्बर लगभग एक हफ्ते तक प्रव्रजन ( migration ) करते लाल पंखो वाले काले पक्षियों ने खाड़ी से आते हुए घर के पीछे वाले हिस्से में जमकर खाया । एक दिन मैं मामला देखने गयी; मै एक संतरे के पेड़ के पास गयी और लगभाग सैंकड़ो पक्षी उड़े । जैसे पेड़ से प्रकट हुए हों । मैंने एक पेड़ देखा फिर रंगों का एक बादल और फिर पेड़ देखा । मै और पास गयी और फिर सैंकड़ो काले पक्षी उड़े, बिना किसी शाखा को हिलाते हुए : जैसे वे सभी पक्षी गुरूत्वहीन ( weightless ) और अदृश्य ( invisible ) हों । वह कुछ ऐसा था के संतरे के पेड़ कि पत्तियां लाल पंखों वाले पक्षयिों के रूप में किसी जादू-टोने से मुक्त हुई हों; वे पेड़ से उड़े, मुझे नज़र आये और गायब हो गए। […] ऐसे दृश्यों से मेरा गला भर जाता है, ये वे मुक्त भेंट हैं, पेड़ों कि जड़ों के पास पड़े हुए चमकीले सिक्के ।

सारा मामला मेरी आँखें खुली रखने का है ।

-- एनी डिल्लार्ड, " टिंकर क्रीक का तीर्थ यात्री " में से

आत्म अन्वेषण के लिए कुछ प्रश्न :-

"आप जो देखते हैं वह पाते हैं" से आप कैसे जुड़ते हैं ?
अपनी आँखे खुली रखना और दुनिया में बिखरे पड़े सिक्कों को देखने का अभ्यास आप कैसे करते हैं ?
देखने के लिए समय निकालने का कोई निजी अनुभव क्या आप हमारे साथ बाँट सकते हैं?










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