Gift from the Sea

Author
Anne Morrow Lindberg
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Image of the Weekसमुद्र सौगात -ऍन मोरो लिंडबर्ग (9 जनवरी, 2013)

समुद्र का किनारा कोई काम करने की जगह नहीं है; न पढ़ने की, न लिखने की और न ही सोचने की जगह है। पिछ्ले सालों के अनुभव से मुझे यह याद होना चाहिए था। किसी मानसिक काम या भावनाओं की तेज़ उडान के लिए कुछ अधिक ही गर्म, नम, और नर्म है यह जगह। लेकिन इंसान कभी सीखता नहीं। काफी आशापूर्वक आदमी वहां एक झोला लेकर पहुँचता है, झोले में एक किताब, कुछ सफ़ेद कागज़, वो पत्र जिनके जवाब देना कब से बाकी है, कुछ नई-2 घड़ी पेन्सिलें, और बहुत से नेक इरादे। किताब अनपढ़ी रह जाती है, पेन्सिलों की नोक टूट जाती हैं, और उस बादल-रहित आकाश की तरह वो सफ़ेद कागज़ कोरे ही रह जाते हैं। न कुछ पढा जाता है, न कुछ लिखा जाता है, और न ही दिमाग में कोई विचार आते हैं - कम से कम शुरू-शुरू में तो यही होता है।
सबसे पहले शरीर की थकान हमें पूरी तरह से घेर लेती है। जैसे इंसान समुदी जहाज़ पर एक खास उदासीनता में लिपट जाता है। फिर विचारों के विपरीत, हर दृढ-निश्चय के उलट, इन्सान मजबूरन समुद्रतट की उस आदिम लय में तैरने लगता है। समुद्र की लहरों की आवाज़, चीड़ के पेड़ों से गुज़रती हवा की सरसराहट, और रेत के टीलों के ऊपर उड़ते हुए बगुलों के पंखों की धीमी फड़फड़ाहट, छोटे-बड़े शहरों की ज़िंदगी, समय सारिणियों और सब कार्यों की व्यस्त लय को डुबो देती हैं। आदमी इन चीज़ों के जादू में आ जाता है, तनाव- मुक्त हो जाता है, और चैन की अंगड़ाई लेता है। वास्तव में, समुद्र द्वारा चपटे किये हुए उस तट, जिस पर वो लेटा हुआ होता है, इन्सान वैसा ही बन जाता है; अनावृत, मुक्त, समुद्र तट की तरह खाली, आज की लहरों की तरह जो कल की लिखावट मिटा देती हैं।

और फिर, दूसरे सप्ताह में किसी दिन, मन जाग उठता है, फिर से जी उठता है। शहरी मायने में नहीं, पर समुद्र-तट के लिहाज से। मन बहने लगता है, मचलने लगता है, समुद्र से उठती मंद लहरों की तरह धीमे -धीमे बेपरवाही से लोटने लगता है। क्या मालूम ये मदहोश लहरें अपने साथ क्या-क्या बहुमूल्य चीज़ें लेकर आएंगी, और हमारे चेतन मन की कोमल सफेद रेत पर छोड़ जाएंगी; कोई एकदम गोल पत्थर, या फिर समुद्रतल से निकला कोई निराला सीप। शायद चेनल्ड वैल्क, मून शेल , या फिर अरगोनौट ही .

लेकिन उस सीप को ढूँढने की ज़रुरत नहीं है, और भगवान के लिए, खोद कर निकालने की तो बिलकुल भी नहीं। समुद्रतल की छान-बीन की कोई आवश्यकता नहीं है। उससे कोई फायदा नहीं होगा। जो लोग बहुत उत्सुक लालची, या अधीर होते हैं, समुद्र उन्हें कुछ नहीं देता। उस खजाने को खोद निकालने की कोशिश करना न केवल इन्सान की अधीरता और लालच दर्शाता है, साथ ही विश्वास की कमी भी। धैर्य, धैर्य, धैर्य! समुद्र हमें धैर्य का ही पाठ पढ़ाता है। धैर्य और विश्वास। हमें समुद्रतट की तरह रिक्त, खुलासा और बिना कुछ चुने, उस समुद्र की सौगात का इंतज़ार करना होगा।

- -ऍन मोरो लिंडबर्ग ("गिफ्ट फ्रॉम थे सी")


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