Wisdom Of Grieving


Image of the Weekशोक करने का विवेक
टेरी पेटन


शोक करना एक आध्यात्मिक कार्यकर्ता की यात्रा का चरण है और शोक करने की प्रक्रिया भी कई चरणों की होती है, इन चरणों को एलिज़ाबेथ कुबलर-रॉस के प्रसिद्ध दुःख के पांच चरणों द्वारा वर्णित किया जा सकता है। ये पांच चरण - इंकार, क्रोध, सौदेबाज़ी, निराशा, और स्वीकृति - किसी भयंकर नुक्सान की सम्भावना या सच्चाई को मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया देने की प्रक्रिया का वर्णन करते हैं।

इंकार दुःख से बचने का एक सुरक्षा साधन कहा जा सकता है। अगर सच्चाई बोहोत कष्टदायक है तो उसका सामना मत करो। अपने मन की आँखें बंद करके समता और स्वस्थ हास्य बांये रखें। नए को बंद करदें, उसकी सच्चाई पे शंका करें, चैनल बदल दें।

हम लोगों की भाग न लेने की प्रेरणा की आलोचना कर सकते हैं, पर ये भी सत्य है के मीडिया द्वारा प्रसारित समाचार प्रतिक्रियावादी और थकाने वाले होते हैं। इसलिए हमारे पास अच्छे कारण हैं के हम इस चौबीसों घंटे के समाचार चक्र में भाग न लें। मीडिया और राजनीति का विवेकपूर्ण उपयोग हमें विचारहीन व्यसन और प्रतिक्रियावादी इंकार से बचाता है।

उदासी, भय और कुछ खोने की भावनाओ से बचने का क्रोध स्वाभाविक साधन बन जाता है। क्रोधित होने के बहुत अच्छे कारण हैं। जिन चीज़ों को बदलने की जरुरत है उन चीज़ों को बदलने की ऊर्जा है क्रोध। पर स्वस्थ क्रोध उठता है और समाप्त हो जाता है, हमेशा नहीं रहता, और वह हमारे दुःख के संपर्क में रहता है।

अगला चरण है सौदेबाज़ी, खोयी समता को प्राप्त करने का एक प्रयत्न, शायद उन परिस्तिथियों की कल्पना करके जहाँ खोने का भाव न हो। जब के, सच्ची समता पूरी सच्चाई को खुले मन से स्वीकार करने पर आधारित है, पर सौदेबाज़ी कषटदायक सच्चाई को दूर रखती है। सौदेबाज़ी इंकार का पररिष्कृत स्वरुप है।


चौथा चरण है निराशा या अवसाद। जब यह स्पष्ट हो जाता है के अब दिल-तोड़ने वाले नुक्सान से बचा नहीं जा सकता तब व्यक्ति थोड़े समय के लिए बिखर जाता है। हम उन चीज़ों को खोने से डरने लगते हैं जिन पर हम हमेशा निर्भर रहे हैं, हमेशा ऐसा माना है के ये तो हमारा ही है - जैसे प्रिय व्यक्ति का साथ, धरती माता का स्वस्थ करने वाला प्रेम, या समृद्ध, सुरक्षित, खुले और उदार समाज में रहने की क्षमता बिना उसकी सुरक्षा के लिए कुछ भी करते हुए।

परिपक्व वयस्कों पर जिम्मेदारी है के वो हमारे जीवन की सच्चाई की विवेपूर्ण समझ रखें। पर ये करने के लिए हमें शोक के कठिन चरणों को पार करके स्वीकृति तक पहुँचाना पड़ता है।

सच्ची स्वीकृति हमारी परिस्तिथि की वास्तविकता को समझती है और हमारी समता में रहने की और कार्य क्षमता को पुनः प्राप्त करने की जिम्मेदारी लेती है। हम जीवन को चुनने का मार्ग ढूंढ लेते हैं, भयंकर दुखों से भरी इस दुनिया में। हम वास्तविकता का सामना करते हैं, उन लोगों का सामना करते हैं जो हमें अच्छे नहीं लगते, उन परिस्तिथियों का सामना करते हैं जिन्हें हम टालना चाहते हैं। हम जब चलने लगते हैं और सकरात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयत्न करते हैं तब हम स्वीकृति तक पहुँच जाते है। हम गहरी समता का अनुभव करते हैं।

मनन के लिए बीज प्रश्न:
परिपक्वता तक पहुंच ने के लिए हमें शोक के सभी पांच चरणों को पार करना पड़ेगा - इस विचार से आप कैसे जुड़ते हैं?
क्या आप, शोक के सभी पांच चरणों से गुजरने का अपना अनुभव हमारे साथ बाँट सकते है?
चलते रहने में और सकरात्मक बदलाव लाने के लिए आप जो कर सकते हैं, वो करने में आपको क्या मदद करता है?


टेरी पेटन एक लेखक हैं जो अध्यात्म और सक्रियतावाद के संयोग का समर्थन करते हैं। यह लेख 'A New Republic of the Heart' नमक पुस्तक से उद्धृत है।
 

Terry Patten is an author, who supports the marriage of spirit and activism. Excerpt above is from The New Republic of the Heart.


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