
मुक्ति देखने का खेल नहीं है
"द वे ऑफ़ लिबरेशन" (मुक्ति पथ) आध्यात्मिक मुक्ति पाने का एक सीधा-सादा, उपयोगी मार्गदर्शन है, जिसे हम कभी जागृति कहते हें, कभी निर्वाण, कभी आत्म-ज्ञान, या कभी बस उसे देखने का तरीका जो पूर्णतः सत्य है. जागृति या निर्वाण जैसे शब्दों को समझ पाना तब तक एकदम असंभव है जब तक आप खुद उनका अहसास न कर लें. इसलिए, यह अंदाज़ लगाना बेकार है कि निर्वाण कैसा होता है; असल में, ऐसा करना निर्वाण पाने के रास्ते में बाधा डालता है. एक मार्गदर्शक सिद्धांत यह है कि यह अंदाज़ लगाने से कि क्या पूर्णतः सत्य है, कई गुना बेहतर है कि आप एक-एक करके इस बात का अहसास करें कि क्या पूर्णतः सत्य नहीं है.
बहुत से लोग सोचते हैं कि आध्यात्मिक शिक्षण का काम है जीवन के सबसे बड़े सवालों का जवाब देना, लेकिन असल में सच एकदम विपरीत है. किसी भी अच्छे आध्यात्मिक शिक्षण का मुख्य काम आपके सवालों के जवाब देना नहीं, बल्कि आपके जवाबों पर सवाल करना है. क्योंकि आपकी जानी और अनजानी धारणाएँ और विश्वास ही हैं जो आपके अनुभवों पर असर डालते हैं, और जहाँ असल में सिर्फ एकता और पूर्णता है, वहां आपको अलगाव और विभाजन देखने पर मजबूर करते हैं.
यह शिखण जिस सच्चाई की ओर हमारा ध्यान खींच रहा है, वह कोई छुपी हुई चीज़ नहीं है, न ही कोई रहस्य है, और न हमसे बहुत दूर है. आप उसे कमा नहीं सकते, न आपका उस पर कोई अधिकार है, और न ही आप उसको सुलझा सकते हैं. ठीक इसी पल में, सच्चाई और सम्पूर्णता साफ आपकी आँखों के सामने है. वास्तव में, सिर्फ एक ही चीज़ है जो देखने, सुनने, सूंघने, चखने, या महसूस करने लायक है, और वो है वास्तविकता, या जिसे आप ईश्वर कह सकते हैं. आप जहां भी जाते हैं, परम सम्पूर्णता आपके चारों ओर मौजूद रहती है. इसलिए हमें इस बारे में अपने को परेशान करने की ज़रुरत नहीं है, लेकिन क्योंकि मानव जाति ने बहुत समय पहले अपने आप को भ्रम और उलझन के जंजाल के ऐसे धोखे में फंसा लिया है कि महसूस करना तो दूर, हम अब अपने अंदर और चारों ओर मौजूद ईश्वर को मानते भी नहीं।
"द वे ऑफ़ लिबरेशन" (मुक्ति पथ) हमें कुछ करने के लिए पुकार रही है; यह वो है जो आपको करना है. यह ऐसा काम है जो आपके पहले सब कामों को पूरी तरह उखाड़ फेंकेगा। अगर आप इस सीख को काम में नहीं लाते, अगर आप इसका अध्ययन नहीं करते और बेधड़क इसे अपने पर इस्तेमाल नहीं करते, तो यह आप में कोई बदलाव नहीं ला पाएगा। "द वे ऑफ़ लिबरेशन" (मुक्ति पथ) एक सोचने का तरीका नहीं है, ये वो चीज़ है जिसे आपको इस्तेमाल में लाना होगा। इस हिसाब से यह पूरी तरह से अभ्यास की चीज़ है.
इस किताब को दर्शक की तरह पढना बेकार है. दर्शक बने रहना आसान और सुरक्षित है; लेकिन अपने आप को सच्चाई की ओर जागरूक बनाने में एक सक्रिय भागीदार (एक्टिव पार्टिसिपेंट) बन पाना न आसान है, और न ही सुरक्षित। आगे की राह पूर्वनिर्धारित नहीं है, ये पूर्ण समर्पण मांगती है, और परिणाम की कोई गारंटी नहीं है. क्या आपने वास्तव में सोचा था कि इसका और कोई तरीका हो सकता है?
- अद्य्शान्ति, "द वे ऑफ़ लिबरेशन" (मुक्ति पथ) के प्राक्कथन से
विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे आप इस किताब को एक दर्शक की तरह पढने से बच सकें, और अपने खुद के जागरण में एक सक्रिय भागीदार बन सकें? क्या आप अपना कोई निजी अनुभव सबसे बांटना चाहेंगे जहां आपको एक सक्रिय भागीदार बनना न आसान रहा हो और न ही सुरक्षित, लेकिन खुद को जागरूक करने का वही एक तरीका था? अपने किन जवाबों पर आपने गहराई से कभी संदेह किया है?
On Oct 8, 2013 Thierry wrote :
That question of commitment is a tough nut to crack for someone as reluctant as I am to commit myself and yet haunted by the absolute necessity of a commitment. The tension between these two opposites has been present throughout my entire existence. Reading (or listening) 's merit is to point to the difficulties one will unavoidably encounter, help one identify the enemy. But by itself will not effect a deep change other than intellectual. However it may also help one realize what is really at stake. Commitment to truth is in no way abstract as I once experienced. It does demand that one exposes oneself to one's psychological fears and limitations if one is to grow out of them while having no certainty about the outcome..
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