Tale of Two Sermons

Author
G.I. Gurdjieff
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Image of the Weekदो उपदेशो की कहानी("जी आई गुरजेफ " द्वारा लिखित) (Mar 25, 2013)

मुझे आपको बताना चाहिए कि हमारे संघ में २ बहुत ही बूढ़े भाई रहते है, एक का नाम है अली भाई और दुसरे का सेज़ भाई। इन दोनों भाइयो ने क्रमश हमारे सभी मठो पर जाने का और देवत्व के विभिन्न पहलुओं को समझाने का दायित्व लिया है। हमारे संघ के ४ मठ है- एक हमारा, एक पामीर कि घाटी में, तीसरा तिब्बत में और चौथा भारत में। और इसलिए अली भाई और सेज़ भाई लगातार एक मठ से दुसरे मठ जाते और सीखाते रहते है।

वे हमारे पास साल में २ बार आते है। उनका हमारे मठ आना बहुत बड़ी घटना मानी जाती है। उन दिनों जब उनमे से कोई भी एक हमारे बीच होता है तो हम सभी की आत्मा को एक स्वर्गीय कोमलता और ख़ुशी महसूस होती है। इन दोनों भाईओं के उपदेश, जो दोनों ही बराबर पवित्र है, और एक जैसा सत्य बोलते है , सभी भाईओं पर और खासकर मुझपर अलग ही प्रभाव करते है।

जब सेज़ भाई बोलते है, तो बेशक स्वर्ग से परिंदो के गाने की आवाज़ लगती है , वह जो कहते है उससे हर इंसान करीब करीब खुल जाता है , जैसे कि मुग्ध हो गया हो। उनका उपदेश एक नहर कि तरह बहती है और कोई भी इंसान सेज़ भाई कि आवाज़ सुनने के अलावा ज़िन्दगी में और कुछ नहीं चाहता। किन्तु अली भाई के भाषण का उल्टा ही प्रभाव पड़ता है। अपनी बूढी उम्र के कारण वह बुरी तरह और अस्पष्टता से बोलते है। कोई नहीं जानता वे कितने साल के है। सेज़ भाई भी काफी बूढ़े है, पर वे काफी तंदरूस्त लगते है, जबकि अली भाई में बुढ़ापे के कारण कमज़ोरी साफ़ दिखाई देती है।

सेज़ भाई के भाषण का जितना मज़बूत छाप श्रोता पर सुनते है, उतना ही वह छाप धीरे धीरे उड़ते जाता है जबतक श्रोता के भीतर बिलकुल भी वह छाप शेष न बचे। लेकिन अली भाई के मामले में भले ही पहले सुनते वक्त लगभग कोई छाप नहीं रहता, धीरे धीरे उनके भाषण का सार एक निश्चित रूप लेता है , और हर दिन थोडा थोडा करके हमारे हृदय के भीतर पूरा डल जाता है और सदैव के लिए बस जाता है।

जब हम इस बात से जागरूक होते है और इसका विश्लेषण करते है कि ऐसा क्यों हुआ, तो हम सब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जो उपदेश सेज़ भाई देते थे, वे उनके दिमाग से निकलते थे और हमारे दिमाग पर असर करते थे, जबकि अली भाई के उपदेश उनके स्वयं से निकलते थे और हमारे स्वयं पर काम करते थे।
हाँ, अध्यापक, ज्ञान और समझ बहुत ही भिन्न है , केवल समझ ही हमे स्वयं तक ले जा सकता है , जबकि ज्ञान उसमे केवल एक गुजरने वाला छण है।

"मीटिंग विथ रिमार्केबल मेन " में "जी आई गुरजेफ " द्वारा लिखित


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