Renaissance

Author
Thich Nhat Hanh
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Image of the Week                                               पुनर्जागरण
                                          - टिक नैट हान
 
        आज सुबह सूर्योदय के समय वृक्ष पर एक नई कोंपल खिली। उस कोंपल का जन्म लगभग   आधी रात में हुआ।। वृक्ष के अंदर निरंतर बहते रस ने वृक्ष की ख।ल को चीर कर एक नए जीवन को आधार दिया। लेकिन वह वृक्ष इन सब गतिविधियों और उस दर्द को न सुन रहा था और न महसूस कर रहा था। वो तो सिर्फ़ एकचित्त अपने आसपास उग रहे फूलों और घास के मद्धम गान को ही सुन रहा था। रात की महक बहुत पवित्र और सुंदर थी। वृक्ष को समय के गुज़रने का अंदाज़ा न था।, न उसे जन्म का ज्ञात और न उसे मरण का ध्यान। वो तो बस वहाँ उपस्थित था जैसे कि आकाश और धरती।
        आज सबेरे भोर के समय मैंने समझा कि आज का दिन बीते सब दिनों से अलग है, यह सुबह अद्वितीय है। हम अकसर ऐसा सोचते हैं कुछ सुबहों का आनन्द किसी और दिन ले लेंगे। लेकिन ये नामुमकिन है क्योंकि हर सुबह खास है और हर दूसरी सुबह से बिलकुल अलग। मित्रों, आज की सुबह आप को कैसी महसूस हो रही है? क्या यह सुबह ंहमारे जीवन में पहली बार आई है, या बीत गई कोई और सुबह खुद को दोहरा रही है? मित्रों, जब हम पूर्ण रूप से हर पल में उपस्थित नहीं होते, तब हर पल ठीक दूसरे पलों जैसा ही दिखता है। लेकिन अगर हम हर पल और हर जगह पर पूरी तरह से उपस्थित रहें तो हर सुबह एक नयी सुबह मालूम होगी। सूरज अलग-अलग समय पर आकाश के अलग-अलग हिस्सों को प्रकाशित करता है। हमारी संपूर्ण जागरूकता उस चंद्रमा के समान है जो सैंकड़ों नदियों के हृदय में से हो कर निकलता है  - नदी का जल बहता रहता है, उसमें एक संगीत उत्पन्न होता रहता है और चंद्रमा उस असीम नीले आकाश के तले चलता रहता है। उस नीले आसमान की ओर देखो, मुस्कुराओ और अपने ह्रदय की जागरूकता को वैसे ही उत्पन्न होने दो जैसे कि सुबह के सूरज की पवित्र किरणें पत्तों और टहनियों को प्यार से छूती हैं।
       कोई भी सुबह सिर्फ़ एक पन्ने की तरह नहीं होती जिसे हम अक्षरों से भर कर एक क्षण में पलट दें। एक पुस्तक एक राह है जिसपर कोई भी आ जा सकता है पर एक सुबह वो राह नहीं है, न ही ये वो रास्ता ही है जिस पर कोई चिड़िया बिना कोई निशान छोड़े ही उड़ जाए। हर सुबह आठ सुरों का एक सुंदर संगम है, पर उस राग से कोई ध्वनि उत्पन्न हुई या नहीं वो तो केवल सुनने वाले की उपस्थिति पर निर्भर करता है।
       पेड़ पर खिली वो नयी कोंपल अभी नन्ही सी है। ये जागरूकता और अंतर्ध््यान की वो कली है जो हर पल लगातार पनपती हुई बढ़ती रहती है। अगर हम एक नई कोंपल को ध्यान से देखें तो हम समझ सकते हैं कि वो समय के बंधनों से मुक्त है क्योंकि कोई जीवन केवल महीनों या सालों में नहीं नापा जा सकता।
       तुम्हारी आंखें ही असीम आकाश, उंचे पर्वत और अर्थात समुद्र हैं। तुम्हारे जीवन की कोई सीमा नहीं है। ये सभी मीठे फ़ल और सुंदर फ़ूल तुम्हारे लिए ही हैं। इन्हें स्वीकार करो।
 
                                                      - टिक नैट हान " कौल मी बाय माय ट्रू नेम्स"
                   


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