The Dalai Lama: Why I Laugh

Author
The Dalai Lama
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Image of the Weekदलाई लामा: मैं क्यों हँसता हूँ
- २६ फरवरी, २०१४

मुझे अपने पूरे जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है; और मेरा देश एक बहुत संकटपूर्ण दौर से गुज़र रहा है। लेकिन मैं अक्सर हँसता हूँ, और मेरी हंसी संक्रामक (contagious) है। जब लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं अब हंसने की हिम्म्त कैसे जुटा पाता हूँ, तो मैं जवाब देता हूँ कि हंसना मेरा पेशा है...

निर्वासन (exile) का जीवन एक दुर्भाग्यपूर्ण जीवन है, लेकिन मैंने हमेशा अपने मन को खुश रखने की कोशिश की है, राजनैतिक औपचारिकताओं से परे, बेघर होने की इस अवस्था ने जो अवसर मुझे प्रदान किये हैं, मैं उनका आभारी हूँ। इस तरीके से मैं अपने मन की शांति की रक्षा कर पाया हूँ।

अगर हम सिर्फ़ यह सोच कर संतुष्ट रहें कि दया, तर्क-शक्ति, और धैर्य अच्छी चीज़ें हैं, वास्तव में यह सोच इन गुणों का विकास करने के लिए पर्याप्त नहीं है। परेशानियां इन गुणों को काम में लाने का मौका देती हैं। ऐसे मौके हमें कौन दे सकता है? निश्चित रूप से हमारे दोस्त तो नहीं, पर हमारे शत्रु ज़रूर, क्योंकि वही हैं जो सबसे ज़यादा मुश्किलें खड़ी करते हैं। अगर हम असल में अपनी राह पर बढ़ना चाहते हैं, तो हमें अपने दुश्मनों को अपना सबसे बड़ा गुरू मानना होगा।

क्योंकि जो भी स्नेह और दया को सम्मान की दृष्टि से देखता है, उसके लिए धैर्य का अभ्यास करना ज़रूरी है, और इसके लिए कोई शत्रू होना ज़रूरी है। इसलिए हमें अपने शत्रुओं का आभारी होना चाहिए, क्योंकि वे ही हमें शांत मन देने में सबसे ज़यादा मदद करते हैं! क्रोध और घृणा हमारे सबसे बड़े शत्रु हैं जिनका सामना करना और जिन्हें हराना ज़रूरी है, न कि वो "शत्रु" जो समय-समय पर हमारी ज़िंदगी में आते रहते हैं।

बेशक यह स्वाभाविक और ठीक है कि हम सब दोस्त बनाना चाहते हैं। मैं अक्सर मज़ाक में कहता हूँ कि एक सचमुच स्वार्थी व्यकित ज़रूर बहुत परोपकारी होगा! हमें दूसरों का ख्याल रखना ज़रूरी है, उनके सुख के बारे में सोच कर, उनकी मदद करके और उनकी सेवा करके, और भी अधिक दोस्त बना कर तथा और मुस्कुराहटें खिला कर। इसका नतीजा? जब आपको खुद मदद की ज़रूरत होगी, आपको जो चाहिए, मिल जाएगा। दूसरी ओर, अगर आप औरों की खुशी को नज़रअंदाज़ कर देते हैं तो आखिर में आप हार जाएंगे। क्या दोस्ती झगड़े, क्रोध, जलन और अनियंत्रित बराबरी से पैदा होती है? मेरे ख्याल में तो नहीं। सिर्फ प्यार ही असली दोस्त बनाता है…

जहां तक मेरा सम्बन्ध है, मैं हमेशा और दोस्त बनाना चाहता हूँ। मुझे मुस्कुराहटें बहुत पसंद हैं, और मेरी तमन्ना है कि मैं और मुस्कुराहटें देख पाऊँ, असली मुस्कुराहटें, क्योंकि वे कई प्रकार की होती हैं -व्यंग्यात्मक, बनावटी, या कुटिल। कुछ मुस्कुराहटें बिलकुल संतुष्टि का भाव नहीं जगाती हैं, और कुछ तो संदेह या डर पैदा करती हैं। लेकिन एक असली मुस्कराहट मन में असली ताज़गी का भाव पैदा कर देती है, और मैं सोचता हूँ कि मुस्कुराहट सिर्फ इन्सान को ही मिली है। अगर हम उन मुस्कुराहटों को देखना चाहते हैं तो हमें उनको उतपन्न करने के कारणों को पैदा करना होगा।

दलाई लामा की किताब "मेरी आध्यात्मिक यात्रा" से उद्धरित

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: सच्ची हंसी के लिए आप को किस चीज़ की ज़रूरत है? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बांटना चाहेंगे जहाँ आप असल में हंस पाएं हों? आप असल में हंस पाने की क्षमता को कैसे पैदा कर सकते हैं?


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