Attachment is Habitual Thinking

Author
Miao Tsan
51 words, 35K views, 25 comments

Image of the Weekआसक्ति एक नित्य सोच है

हम अपने सभी अनुभवो को अपनी स्वाभाविक सोच से छान कर देखते है| दूसरे शब्दोमे हम अनजाने में उसी दिशा में चलते है जैसा हम सोचते है, और हम जैसे सोचते है वही दूसरे व्यक्ति, वस्तु या स्थिति के प्रति हमारी भावनाए और विचार को पैदा करता है| लेकिन इस तरह कि समज सच्चाई को ख़तम कर देती है और बदकिस्मती से हम स्व केंद्रित सोच से वास्तविकता कि सही व्याख्या नहीं कर सकते| जैसे कि, जब हम अपने आपको असंतोषजनक स्थिति में पाते है तो हम गुस्सा करते है| हम उसमे कोई मदद नहीं कर सकते| हम उस अनुभव को एक ख़राब अनुभव बताते है| लेकिन, हमारी हर एक सोच एक बदलाव का अवसर भी देती है| क्योकि हर एक विचार स्वतन्त्र और निराधार होता है| प्राकृतिक रूप से एकदम खाली|

प्रत्येक विचार का उठना और मिट जाना एक ही साथ होता है| अगला विचार क्या हो सकता है उसका पिछले विचार से कोई लेना देना नहीं है| वह एक अनगिनित दिशा एवं स्थान कि और जा सकता है| क्योकि एक मुक्त मन को अपने विचारो को किसी एक दिशा में पकड़ के रखने कि जरुरत नहीं होती, नहीं विचारो को एक दूसरे के साथ कोई तालमेल बनाना होता है| किन्तु, सिर्फ नित्य सोच के कारण ही हमारा मन एक तय कि गयी दिशा में आगे बढ़ता है| इस तथाकथित स्वाभाविक प्रवृत्ति (और अचेतन मन) यह दर्शाता है कि हमारा मन कुछ निश्चित विचारो से गहरा हुआ है| जब एक विचार उत्पन्न होता है तो वह अपने साथ उसके अनुरूप प्रतिक्रिया भी पैदा करता है| हम इस प्रतिक्रिया को एक जड़ता के साथ अनुभव करते है| हमारी स्वाभाविक मानसिक प्रवृत्ति वास्तव में विचारो कि दिशा होती है| यह तब होता है जब हम विचारो से उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया को होश पूर्वक दूर करने का प्रयास नहीं करते|

बेकाबू प्रतिक्रिया - खास रूप से गुस्सा, उदासी और कामुक आसक्ति - ज्यादातर जिद्दी बन जाते है, लगभग बिना रुकनेवाला लगाव| यह इस तरह से होता है कि जैसे एक ग्रामोफ़ोन एक ही जगह पर अटकता है| आसक्ति एक स्वाभाविक सोच है और एक विचार जो हमारे अंदर कि शांति पर कब्ज़ा करता है या भंग कर देता है| जब मन किसी व्यक्ति या स्थिति पर निर्भर हो जाता है और एक ही तरह के विचारो को दोहराता है उसे आसक्ति कहते है| जब कभी भी कोई निश्चित व्यक्ति, वस्तु या परिस्थितिया एक ही तरह कि प्रतिक्रिया या भावनाए पैदा करती है, वह आसक्ति है| जब हमें किसी व्यक्ति से अनुमोदन लेने कि या किसी वस्तु पर अधिकार प्राप्त करने कि तीव्र इच्छा होती है वह भी आसक्ति है|

अलग अलग तरह कि आसक्तिया हमें विचारो एवं भावनाओ को परावर्तित करने के लिए विवश करती है, जो हमारे उस मन के दरवाजे को और सख्त बनाता है जिससे हम इस दुनिया को देखने कि कोशिश करते है| आसक्ति द्वारा संचालित ज़िन्दगी पुनरावर्तित अभिव्यक्ति और एक ही तरह कि मुसीबत और विवादो कि तरह होती है|

मिआओ त्सान - "जस्ट युस धिस माइंड" से

प्रतिबिम्ब के लिए कुछ प्रश्न: आपके लिए आसक्ति का मतलब क्या है? आपको रोकने वाली आसक्ति को आप कैसे पहचानोगे? क्या आप कोई ऐसा अनुभव बता सकते हो जब अपने अपनी आसक्ति को कार्य करते हुए देखा हो?


Add Your Reflection

25 Past Reflections