Selfless Climbing versus Ego Climbing

Author
Robert Pirsig
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Image of the Week नि: स्वार्थ चढ़ाई बनाम अहंकार चढ़ाई
- रॉबर्ट पिरसिग (May 06, 2013)

फीड्रस ने एक पत्र लिखा भारत से जो की कैलाश पर्वत की यात्रा के बारे में था। कैलाश जो गंगा का स्रोत है, शिव का निवास स्थान है और ऊँची हिमालय पर्वत-श्रृंखलाओं में स्थित है। यह यात्रा एक संत और उनके अनुयायिओं क साथ की जानी थी।

वो कभी पर्वत तक पहुँच ही नहीं पाया। तीसरे दिन के बाद उसने थक कर हार मान ली और तीर्थयात्रा उस के बिना ही आगे बढ़ी। उसने कहा कि उसके पास शारीरिक ताकत थी लेकिन वह शारीरिक शक्ति पर्याप्त नहीं थी। उसके पास बौद्धिक प्रेरणा भी थी, लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं थी। उसने यह नहीं सोचा कि वह अभिमानी हो गया, लेकिन सोचा के वह यह यात्रा खुद की समझ हासिल करने के लिए और अपने अनुभव को व्यापक बनाने के लिए कर रहा है। वह अपने खुद के प्रयोजनों के लिए पहाड़ और तीर्थ यात्रा का उपयोग करने की कोशिश कर रहा था। वह अपने आप को एक निश्चित इकाई मानता था, ना ही तीर्थयात्रा ना ही पहाड़ मानता था और इस तरह इसके लिए तैयार नहीं था। उसने अंदाजा लगाया के दुसरे यात्री जो पर्वत तक पहुँच गए शायद पर्वत की पवित्रता को इतनी तीव्रता से अनुभव कर पाए होंगे की उनका हर कदम एक भक्ति पूर्ण समर्पण था उस पवित्रता को। पहाड़ की पवित्रता का संचार अपने स्वयं के आत्माओं में होने से वे यात्री उसकी उच्च शारीरिक क्षमता सहन कर सके उससे कहीं ज्यादा सहनशक्ति रखते थे।

अप्रशिक्षित आँख को अहंकार चढ़ाई और नि: स्वार्थ चढ़ाई समान दिखाई दे सकती हैं। दोनों प्रकार के पर्वतारोही अपना अगला कदम पिछले के सामने रखते हैं। दोनों एक ही गति से सांस लेते हैं। दोनों ही थक जाने पर रुक जाते हैं और विश्राम मिलने पर दोनों ही चलने लगते हैं। लेकिन, वाह क्या फर्क है दोनों में! अहंकार पर्वतारोही समायोजन से बाहर एक उपकरण की तरह है। वह एक पल बहुत जल्दी या बहुत देर से अपने पैर रखता है। वह पेड़ों के मध्य से सूर्य के प्रकाश का एक सुंदर मार्ग देखना चूक सकता है। उसके लड़खड़ाते कदम उसके थकने का निर्देश कर रहे हैं, फिर भी वह चलता रहता है। वह अजीब समय पर आराम करता है। वह रस्ते में आगे क्या है वह देखने के लिए ऊपर देखता है जबके बस अभी थोड़ी देर पहले ही उसने देखा था के आगे क्या है। दी गयी परिस्थितियों में वह तेजी से या बहुत धीमी गति से चलता है। जब वह बात करता है उसकी बात कहीं और के बारे में किसी और चीज़ के बारे में होती है। वह यहाँ है लेकिन वह यहां नहीं है। वह यहां जो है उसे खारिज करता है, इसके साथ दुखी है, वह और आगे बढ़ना चाहता है, लेकिन जब वह वहां पहुँच जायेगा वह उतना ही दुखी रहेगा क्यूंकि तब वह "यहाँ" होगा। जो वह खोज रहा है, जो उससे चाहिए वह उसके आस पास ही है। पर उससे वह नहीं चाहिए क्यूंकि वह सब उसके आस पास है। हर कदम एक प्रयत्न है शारीरिक और अध्यात्मिक स्तरों पर क्यूँके वह अपने धेय अपने से बहार और दूर देखता है।

रॉबर्ट एम. पिरसिग, ज़ेन और मोटरसाइकिल रखरखाव की कला में से।

अत्म्निरख्षण के लिए बीज सवाल: "हर कदम किसी पवित्र वास्तु के प्रति हमारा भक्ति पूर्ण समर्पण हो" से आप क्या समझते हैं ? कैसे हम नि: स्वार्थ पर्वतारोहि बने न की अहंकार पर्वतारोहि? दोनों के बीच का अंतर स्पष्ट हो ऐसी कोई निजी कहानी आप हमारे साथ बाँट सकते हैं?


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