The Way of the Farmer

Author
Masanobu Fukuoka
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Image of the Week एक किसान का जीवन - मासानोबू फुकुओरा (१० अक्तूबर, २०१२)

आज विश्व की जो हालत है उसका मूल कारण है इच्छाओं पर हमारा असंयम |

धीमी नहीं, तेज़ रफ़्तार; कम नहीं, ज्यादा ज़रूरतें - यह तड्कीली-भड़कीली "उन्नति" ही हमारे समाज को पतन की ओर धकेल रही है | ऐसे विकास ने तो केवल इंसान को प्रकृति से छिटकाने का ही काम किया है | मानव जाति को सांसारिक संसाधनों की लालसा से मुक्त होकर तथा सिर्फ अपने आप के फायदे के बारे में सोचना छोड़कर, आध्यात्मिक जागरूकता की ओर बढ़ना होगा |

बड़ी- बड़ी मशीनों से संचलित खेती के तरीकों को छोड़कर हमें छोटे- छोटे खेतों के माध्यम की ओर बढ़ना होगा - ऐसे खेत जो केवल धरती की प्राण-शक्ति से ही जुड़े हों | भौतिक ज़रूरतों और आहार को बिलकुल सरल और साधारण होना चाहिए | अगर ऐसा हो जाए तो हर काम सुखद हो जाएगा और हमारे जीवन में आध्यात्मिकता के लिए जगह बनेगी |

जैसे-जैसे किसान अपने खेतों को बड़े पैमाने पर चलाने की होड़ में लग जाता है, वैसे- वैसे उसका शरीर और आत्मा नष्ट होने लगते हैं और वह उतना ही आध्यात्मिक संतोष के जीवन से दूर होता जाता है | छोटे पैमाने पर खेती करने वाले किसान की ज़िंदगी भले ही साधारण दिखती है लेकिन ऐसी ज़िंदगी जीने से इन्सान को "महत्त्वपूर्ण चीज़ों" पर चिंतन करने का मौका मिलता है | मेरा मानना है कि अगर हम अपने पड़ोसी और उसकी रोज़-मर्रा की ज़िंदगी को गहराई से समझ पाएं, तो हमें संसार की सबसे ज़रूरी चीज़ें देखने को मिल जाएंगी |

ताओ ज्ञानी, लाओ जू, का कहना है कि एक सम्पूर्ण और अच्छा जीवन सिर्फ एक छोटे से गाँव में ही जिया जा सकता है | ज़ेन धर्म के संस्थापक, बोधिधर्म, ने नौ वर्ष चुपके से एक गुफा में ही बिता दिए |

हर समय ज्यादा पैसे कमाने कि फ़िक्र, खेत को और बड़ा और विकसित करने की चिंता, नकदी फसलें उगाने की होड़ और उन्हें दूर-दूर बेचने का ध्यान, यह सब एक असली किसान के काम करने के तरीके नहीं हैं | जहाँ शरीर हो वहीँ दिलोदिमाग का हो पाना , अपने छोटे से खेत पर ध्यान दे पाना, हर दिन को अपने तौर से सम्पूर्ण रूप से जी पाना, यही किसी ज़माने में खेती करने का तरीका था |

किसी भी अनुभव को दो हिस्सों में बांटकर, पहले को भौतिक और दूसरे हिस्से को आध्यात्मिक का नाम दे देना, जीने का बहुत ही संकीर्ण और पेचीदा तरीका है | हमें जीवित रहने के लिए सिर्फ खाने पर निर्भर रहने की ज़रुरत नहीं है | आखिर हम यह जानते ही नहीं कि अन्न का असली मतलब क्या है | अच्छा यही होगा कि लोग भोजन के बारे में सोचना ही छोड़ दें | ठीक उसी तरह बेहतर यही होगा हम जीवन के 'परम उद्देश्य' को खोजने में अपना समय बर्बाद न ही करें | इन महान आध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर ढूंढ पाना बहुत मुश्किल है लेकिन यह बात न समझ पाना बहुत आम बात है | धरती पर हमारा जन्म होना और हमारे इस जीवन का उद्देश्य ही है कि हम जीवन की वास्तविकता का सामना कर सकें |

यह जीवन हमारे पैदा होने के परिणाम से ज्यादा कुछ भी नहीं है | लोग जीने के लिए जो कुछ भी खाते हैं या सोचते हैं कि उन्हें खाना चाहिए, वह केवल उनके दिमाग की उपज है | यह संसार इस तरह रचाया गया है कि अगर हम अपनी मानवीय इच्छाओं को छोड़कर प्राकृतिक नियमों से चलने लगें तो इस संसार में किसी को भी भूखा नहीं रहना पड़ेगा |

अपने जीवन को आज और अभी जी पाना ही मानव जीवन का सच्चा आधार है | जब केवल आधुनिक वैज्ञानिक जानकारी ही हमारे जीवन का आधार बन जाती है, तब लोग ऐसा सोचने लगते हैं कि उनका जीना सिर्फ प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा पर ही निर्भर है और पौधे केवल नाइट्रोजन, फोस्फोरस और पोटाश पर ही जीते हैं |

आज के वैज्ञानिक प्रकृति का कितना भी निरीक्षण- परीक्षण क्यों न कर लें, उनका अनुसन्धान कितनी भी ऊँचाई पर क्यों न पहुँच जाए, वो आखिर इतना ही जान पाते है कि असल में प्रकृति कितनी परिपूर्ण और रहस्यमयी है | यह मानना कि नए- नए अनुसंधानों और अविष्कारों से मानव जाति प्रकृति से भी बेहतर बन सकती है, यह हमारा भ्रम है | मैं समझता हूँ कि आज मनुष्य का सबसे बड़ा संघर्ष और कुछ नहीं, बस एक वो जानकारी है कि हम प्रकृति को पूरी तरह समझ ही नहीं सकते |

तो एक किसान के लिए एक ही सुझाव है कि वह अपनी मेहनत को प्रकृति की सेवा में लगा दे और फिर सब भला ही होगा |
- मासानोबू फुकुओरा


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