Who Is Having This Pain?

Author
Mingyur Rinpoche
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“किसे हो रहा है यह दर्द?”
- मिंग्युर रिनपोछे

दर्द के बारे में अच्छी बात यह है कि वह हमारा ध्यान अपनी और खींचता है। जब आप पूरी सजगता के साथ दर्द को महसूस करते हैं तो आप जान जाते हैं कि आपका मन ठीक इस समय कहाँ है। असली अभ्यास तो यही है - मन की सजगता में ठहरना। ज्यादातर जब दर्द ध्यान खींचता है, तो हमारी पहली प्रतिक्रिया होती है — इसे दूर भगाना।
हम दर्द को मन के बाहर की किसी चीज़ के रूप में देखने लगते हैं — एक दुश्मन, जिसे बाहर फेंक देना है।
लेकिन दर्द के बारे में एक उल्टी, पर गहरी बात है — जब हम उसका विरोध करते हैं, तो दर्द घटता नहीं, बल्कि उसमें पीड़ा जुड़ जाती है।
शारीरिक दर्द शरीर में उठता है, लेकिन उससे जुड़ी नकारात्मक प्रतिक्रिया उस ‘मैं’ की भावना से आती है जो खुद को स्थायी मानता है और दर्द को अपना शत्रु बना लेता है।
यहीं से पीड़ा जन्म लेती है।
जब हम दर्द को दूर भगाने की कोशिश करते हैं, तब हम खुद के ही विरुद्ध खड़े हो जाते हैं — और हमारा मन एक निजी युद्धभूमि बन जाता है, जो उपचार (healing) के लिए सबसे प्रतिकूल परिस्थिति होती है।
कई लोगों के लिए बीमारी के साथ ‘आत्म-दया’ ऐसे चिपक जाती है जैसे गोंद। और अहंकार की आवाज़ पूछती है: “मैं ही क्यों ?”
लेकिन यह आवाज़ शरीर के दर्द में नहीं, बल्कि मन में है — जो दर्द से अपनी पहचान जोड़ लेता है।

मैंने ध्यान देना शुरू किया अपने पेट की ऐंठन पर। बस मन को उस जगह पर टिकाना —
ना स्वीकार, ना अस्वीकार।
सिर्फ़ उस संवेदना के साथ होना।
उस एहसास को महसूस करना, कहानी में नहीं उलझना।
कुछ देर बाद मैंने जांच शुरू की:
इस एहसास की प्रकृति क्या है?
यह कहाँ स्थित है?
फिर मैंने सवाल पूछा —
“किसे हो रहा है यह दर्द?”
क्या ये मेरी उत्कृष्ट भूमिकाओं में से एक है ?
ये सब सिर्फ धारणाएं हैं।
दर्द भी एक धारणा है,
जकड़न भी एक धारणा है।
धारणाओं से आगे बढ़ के जागरूकता में रहें।
अस्तित्व (self)- से-भी- आगे - वाले -अस्तित्व (self) में , धारणाएं एवं कोई धारणाएं नहीं, दर्द एवं कोई दर्द नहीं ,दोनों को समाने दें।
दर्द सिर्फ एक बादल नुमा हैं , जो हमारी जागरूकता के मध्य से गुजर रहा है।
जकड़न, पेट का दर्द , जागरूकता के ही असीम रूप हैं।
जागरूकता में बने रहें और अपने दर्द से भी बड़े बन जाएँ।जागरूकता में , आसमान की तरह , धारणा को रहने के लिए कोई स्थान नहीं है।
उसे आने दें , उसे जाने दें | अब यह दर्द किसकी पकड़ में है।
अगर आप दर्द से एकरूप हो जाते हैं , तो कष्ट सहने वाला कोई नहीं रह जाता।तब सिर्फ एक केन्द्रित संवेदना रह जाती है जिसे हम दर्द का नाम दे देते हैं।
दर्द को पकड़ के रखने वाला कोई नहीं है।
जब दर्द को पकड़ के रखने वाला कोई नहीं रह जाता है , तब क्या हो जाता है ?
सिर्फ दर्द | वास्तव में , वो भी नहीं, क्योकि दर्द तो सिर्फ एक नाम की चिप्पी (label) है।
उसकी अनुभूति को महसूस करें| धारणा से ऊपर, पर फिर भी उपस्थित।इसके अलावा कुछ नहीं।
अनुभव करें।उसे रहने दें।
और फिर मैं अपने मन की खुली जागरूकता में वापस चला गया।

मनन के लिए मूल प्रश्न: आप इस धारणा को कैसा मानते हैं कि दर्द एक शत्रु तब बन जाता है जब हम अपने आपको उसके विरुद्ध खड़ा कर लेते हैं,और उससे हमारी आतंरिक दुनिया एक व्यक्तिगत युद्ध स्थल बन जाती है? क्या आप ऐसे समय को चित्रण करने वाली एक कहानी साझा कर सकते हैं , जब आपने दर्द से अपने रिश्ते में कुछ बदलाव अनुभव किया था, चाहे वो दर्द को अपना कर हुआ,चाहे वो एक खोज से हुआ, या सिर्फ उसे होने और बने रहने देने मात्र से हुआ? आपको उस जगह जागरूकता में बने रहने में,जो आसमान की तरह, धारणाओं से ऊपर है, और जहाँ सभी अनुभूतियाँ बिना किसी राग या द्वेष के आती जाती रहती हैं, किस चीज़ से मदद मिलती है ?
 

Yongey Mingyur Rinpoche is a Tibetan Nepali teacher and master of the Karma Kagyu and Nyingma lineages of Tibetan Buddhism. He has written five books and oversees an international network of meditation centers.


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