“सरलता में संतोष”
सुसन बावर-वू के द्वारा
माइंडफुलनेस यानी सजगता का अभ्यास ही वह चाबी है जो हमें जगाता है और जीवन की सरल, छोटी-छोटी खुशियों को पूरी तरह से महसूस करने में मदद करता है। ये सुख वे होते हैं जो अक्सर बिना किसी कीमत के आते हैं—जैसे साफ-सुथरे बिस्तर पर सोना, गरम पानी से नहाना, मनपसंद संगीत सुनना, रात में चाँद और तारों को निहारना, गर्मी में पेड़ की छांव में बैठना, सर्द दिन पर चाय की चुस्की लेते हुए अलाव के पास बैठना, या पार्क में दौड़ते कुत्तों और खेलते बच्चों को देखना।
हर किसी के लिए ये सुख अलग हो सकते हैं। और यह भी संभव है कि एक ही व्यक्ति के लिए ये सुख- समय, मौसम, साथ में कौन है, या उस दिन की मन:स्थिति के अनुसार बदलते रहें। ज़रूरी यह है कि हम इन छोटे खज़ानों को पहचानें—वे जो हमारे पास पहले से हैं या हमारे सामने आने वाले हैं। अगर आप केवल अगले हफ्ते की डॉक्टर की रिपोर्ट या टेस्ट में उलझे रहेंगे, तो हो सकता है आप अपने घर की खिड़की के बाहर दुर्लभ प्रवासी पक्षियों को देखने का मौका चूक जाएं।
हर बार जब आप किसी सरल, सच्चे सुख को पहचानें—तो बस एक पल के लिए ठहरें, मुस्कराएं, और उस क्षण के लिए दिल से आभार प्रकट करें-क्योंकि वह पल अपने आप में एक सहज सौगात है।
मेरे पिता के जीवन के अंतिम दो वर्षों में, वे खाना-पीना छोड़ने को मजबूर हो गए थे क्योंकि वो खाना निगलने में असमर्थ हो गए थे। जो चीज़ें हम अक्सर सामान्य मान लेते हैं—जैसे खाना बनाना, चखना, वाइन की चुस्की लेना—वे सब उनसे छिन गई थीं। वे पहले सब्ज़ी लेने रोज़ जाते, नए व्यंजन सोचते, फिर उन्हें प्रेम से बनाते और धीरे-धीरे उनका आनंद लेते। बाहर खाना खाने जाना और परिवार के लिए त्योहारों पर विशेष भोजन बनाना उनके प्रिय शौक थे। अब यह सब असंभव हो गया था। यहाँ तक कि बर्फ का एक टुकड़ा या खुद की लार निगलना भी उनके लिए खतरनाक हो गया था।
लेकिन उन्होंने नए सुख तलाशना नहीं छोड़ा। उनकी प्यारी लैब्राडोर डेज़ी उनके लिए अपार आनंद का स्रोत बन गई। जब डेज़ी अपने सिर को उनके सीने पर रख कर चुपचाप लेटती, तो पिताजी उसकी आंखों में देखकर मुस्कराते। वे उसे प्यार से थपथपाते, और डेज़ी उनके चेहरे को चाटकर अपना प्यार जताती। वह शांत समय, डेज़ी के साथ बिताया गया, उनके लिए सबसे कीमती था।
वे इस बात के लिए भी आभारी थे कि वे अब भी थोड़ा चल सकते थे—वैसे वो पहले मैराथन दौड़ते थे।वे लॉन कुर्सी पर बैठते, डेज़ी को पैरों के पास रखकर, न्यू इंग्लैंड की धूप का आनंद लेते। पक्षियों का गाना, आकाश में तैरते बादल, हवा में हिलते मेपल के पेड़, और वर्मोंट की ताज़ा हवा उन्हें फिर से जीवंत कर देती थी। प्रकृति उन्हें पोषण देती थी। और वे महसूस करते थे—सरलता ही संतोष है।
मुझे एक और महिला की याद आती है—एना, जो लंबे समय अस्पताल में भर्ती रहीं। घर लौटने के बाद, वे रोज़ की चीज़ों को नए नजरिए से देखने लगीं। उन्होंने कहा:
“एक दिन मैं रेडिएटर के पास खड़ी थी, कुछ पढ़ने के लिए उठा ही रही थी, और अचानक सोचा, ‘आह, मैं अपने घर में हूं, रेडिएटर गरम है, यह कितना सुखद है।’”
एक क्षण रुकिए। अपनी सजगता का दायरा फैलाइए और खुद से पूछिए:
इस समय आपके जीवन में कौन-से सरल सुख मौजूद हैं? आप क्या देख, सुन, सूंघ, स्वाद या महसूस कर रहे हैं जो सुखद है? कौन-से रंग, रोशनी, गंध, स्वाद या छुअन आपको आनंदित कर रहे हैं?उन्हें महसूस कीजिए। कृतज्ञता (आभार) को अपने भीतर उतरने दीजिए। सजग रहिए और उस आभार का आनंद लीजीए ।
मनन के लिए मूल प्रश्न
1-आपके लिए यह विचार कैसे मायने रखता है कि जीवन की साधारण सी सुखद अनुभूतियाँ—जैसे प्रकृति को निहारना या घर के गरमाहट भरे वातावरण का आनंद लेना—हमें एक गहरी सजगता और कृतज्ञता की भावना से जोड़ सकती हैं?
2-क्या आप अपने जीवन की कोई ऐसी कहानी साझा कर सकते हैं जब किसी कठिन समय के दौरान भी आपने किसी सरल अनुभव या गतिविधि में सच्चा सुख पाया हो?
3-आपके जीवन में रोज़मर्रा की हलचलों, चिंताओं या व्यस्तता के बीच, क्या चीज़ आपकी मदद करती है कि आप रुकें, गहराई से देखें, और इन छोटे-छोटे खज़ानों के लिए आभार महसूस करें?