
“ समानुभूति का अंधकारमय पहलू”
⁃ माइकल वेंचुरा के द्वारा
वह समानुभूति जो जोड़ती है, जो निर्माण करती है और जो उपचार करती है, उसके लिए एक नैतिक आचार संहिता आवश्यक होती है। इसमें संयम की ज़रूरत होती है। इसमें विश्वास की ज़रूरत होती है। यह समानुभूति, उसको रखने वाले से केवल दूसरों को समझने की नहीं, बल्कि उस समझ से जो भावनाएं और ज़िम्मेदारियां सामने आती हैं, उनका सम्मान करने की अपेक्षा करती है। जब समानुभूति नैतिकता से अलग हो जाती है, तो वह मुस्कुराहट के साथ एक प्रकार का दबाव बन जाती है।
हम आज इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में साफ़ देख सकते हैं — जहां मशीनों को इस तरह प्रशिक्षित किया जा रहा है कि वे समानुभूति जैसा व्यवहार दिखा सकें। आपका चैटबॉट आपकी झुंझलाहट पर माफ़ी माँगता है, वर्चुअल असिस्टेंट आपको मीठे शब्दों में हिम्मत देता है, और मेंटल हेल्थ ऐप बिना जज किए आपकी बात सुनता है। लेकिन ये सिस्टम कुछ महसूस नहीं करते — इन्हें सिर्फ यह पता होता है कि क्या कहना है। हम एक ऐसे दौर में प्रवेश कर रहे हैं जहां ये “समानुभूति” एल्गोरिद्म हमारे मैनेजरों से बेहतर तरीके से परेशानी पहचान सकते हैं, लेकिन इनके पास यह तय करने की नैतिक समझ नहीं है कि अब करना क्या है। और अगर हमने सावधानी नहीं बरती, तो हम जल्द ही नकली समानुभूति को सच्चे जुड़ाव की तरह समझने लगेंगे। इस प्रक्रिया में, हम न सिर्फ़ अपनी भावनात्मक मेहनत, बल्कि एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनात्मक ज़िम्मेदारी भी मशीनों को सौंप देंगे।
जिम्मेदारी के बिना समानुभूति केवल खोखली ही नहीं होती, बल्कि धोखा देने वाली भी होती है। यह लोगों को झूठे भरोसे में डाल देती है। और यह उसी विश्वास को तोड़ देती है जिसे बनाने का दावा करती है।
फिर भी, हम समानुभूति को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। यही तो उकसाने वालों की इच्छा है। वे देखभाल को कमजोरी, गरिमा को नासमझी(भोलापन) और विश्वास को बोझ की तरह पेश करना चाहते हैं। ध्यान दें, हम इस प्रलोभन में न आ जाएँ।
अगर हम व्यापार, राजनीति और तकनीक में बेहतर नेतृत्व चाहते हैं, तो हमें समानुभूति को एक जिम्मेदारी के रूप में फिर से अपनाना होगा। हमें इसे केवल एक ‘सॉफ्ट स्किल’ के रूप में नहीं, बल्कि एक अनुशासित अभ्यास के रूप में सिखाना होगा, जो नैतिकता से जुड़ा हो और हमारी साझी मानवता में जड़ें रखता हो। हमें नेताओं को केवल उनके शब्दों के लिए नहीं, बल्कि इस बात के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराना होगा कि वे हमें कैसे और क्यों समझना चाहते हैं।
मनन के लिए मूल प्रश्न:
१-आप इस विचार से कितनी सहमति रखते हैं कि जिम्मेदारी के बिना समानुभूति केवल खोखली ही नहीं, बल्कि भ्रामक भी होती है? और यह दृष्टिकोण तकनीक और लोगों के साथ के आपके संबंध को कैसे प्रभावित कर सकता है?
२-क्या आप कोई ऐसा व्यक्तिगत अनुभव साझा कर सकते हैं जहाँ दी गई या प्राप्त की गई समानुभूति ने किसी टूटे हुए भरोसे को दोबारा बनाने में अहम भूमिका निभाई हो?
३- आपको समानुभूति का ऐसा अभ्यास विकसित करने में क्या मदद करता है जो अनुशासित हो और नैतिकता से जुड़ा हो, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आपकी सच्ची समझ आपके कार्यों में भी झलके?
Michael Ventura is an author, speaker and adviser on empathic leadership to corporations, universities and institutional clients around the world. He is the author of “Applied Empathy: The New Language of Leadership.”
SEED QUESTIONS FOR REFLECTION: How do you relate to the notion that empathy without accountability is not just hollow, but deceptive, and how might this perspective influence your interactions with technology and people alike? Can you share a personal story that highlights a moment when empathy, either given or received, played a crucial role in rebuilding trust after it had been fractured? What helps you cultivate a practice of empathy that is disciplined and bound by ethics, ensuring that your heartfelt understanding is reflected by your ensuing action?