श्रद्धा, धार्मिक आस्थाओं से भिन्न है , द्वारा रेब ज़लमन
जहाँ श्रद्धा है वहां धार्मिक आस्थाएं कम हैं| हम धार्मिक आस्थाओं का इस्तेमाल सम्मति बढाने के लिए करते हैं न कि ब्रह्माण्ड से रिश्ता बनाने के लिए| श्रद्धा ही है जिसे हम ब्रह्माण्ड के साथ का रिश्ता कहते हैं| ये धार्मिक आस्थाओं से अलग है |
धार्मिक आस्थाएं , शायद खोल में लिपटी उस टॉफ़ी के समान होंगी , जो श्रद्धा से बाहर आती हैं|पर श्रद्धा एक कार्य है , एक गहरा गहरा कार्य | अतः जब भी हम श्रद्धा को एक संज्ञा के रूप में इस्तेमाल करते हैं तब काम नहीं बनता | “मुझे श्रद्धा होनी चाहिए “ |मैं राशन दूकान जा के देखूंगा कि मैं श्रद्धा खरीद सकता हूँ क्या| ये इस तरह काम नहीं करता है|
फिर श्रद्धा क्या है ? श्रद्धा है “श्रद्धावान होना “ |ये एक संज्ञा है | ये एक क्रियाशीलता है|एक कार्य है|और ये कार्य ऐसे चलता है:मैं अपने आपको ब्रह्माण्ड की केंद्रीय प्रज्ञता की ओर खोलता हूँ, ताकि मैं उस अभिप्राय के लिए जी सकूं जिसके लिए मैं बना हूँ “|
जब मैं उस मनोभाव के साथ आ सकता हूँ, जो की ऐसा मनोभाव है जो सत्य में रहना चाहता है, जो ऐसी अवस्था खोजता है जिसमे वो यह कह सके: “समर्पण का मायने क्या है “? समर्पण का मायने है कि मैं विश्व को मेरी इच्छा अनुरूप देखने की भावना को त्यागता हूँ , और मैं ब्रह्माण्ड से पूछता हूँ “ तुम्हारी क्या इच्छा है, मैं तुम्हे किस तरह समझ सकता हूँ?
धार्मिक आस्थाएं हमें सदैव ही उलझन में डालेंगी |( हँसते हुए) मुझे याद है मैं गाड़ी के पीछे कगे स्टीकर पर यह पढ़ा था “ आप दिमाग मेंआने वाले हर ख्याल पे विश्वास न करें”| एक प्रकार से यह कह रहा है आपका मन और आपका प्रचिलित रास्ता एक जैसे नहीं चलते|
मेरे कट्टरवादियों के साथ के अनुभवों में से अच्छे अनुभव उस समय के हुए हैं जब मैंने उन भाइयों से कहा है ( बहनें उनके साथ ज्यादा होती नहीं थीं), मैंने उनसे ये कहा “अपने को जेरुसलम के गिरजाघर , ग्रीस और रोम के गिरजाघर, के बीच के फर्क और उस वक़्त के यहूदियों की बात नहीं करनी है| अपने आज की बात करते हैं “|
आप भी इश्वर से प्रेम करते हो, मैं भी इश्वर से प्रेम करता हूँ| ( उदाहरण स्वरुप ) क्या आपको लगता है psalms ( यहूदी भजन) की किताब पढने के लिए एक अच्छी किताब है ? और फिर हम बैठ कर उस psalms ( यहूदी भजन) की किताब को साथ पढ़ते हैं| वो उसका जिस भाषा में भी अनुवाद करें, मैं वास्तविक यहूदी भाषा की और जाता हूँ| और ये प्रक्रिया एक इतना अच्छा रूप ले लेती है , क्योंकि उनके पास समझ है, पहचान है , उनके पास भावना है, और यही इश्वर का ज्ञान है|
जब भी आप उस स्थिति पे पहुंच जाते हो जहाँ आप एक धार्मिक पुस्तक को इस तरह पढ़ सकते हो , आप अत्यंत ही नरम एवं मुलायम बन जायेंगे | कारण की ये दैविक शब्द मात्र प्रचार वाकय ही नहीं हैं|
मनन के लिए मूल प्रश्न : श्रद्धा एवं धार्मिक आस्था के बीच की भिन्नता से आप कैसा नाता रखते हैं ? क्या आप उस समय की एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने अलौकिक का स्वाद पाया हो ? आपको अपनी पूर्व की जानकारी और पुख्ता करने से ऊपर उठ कर और ज्ञान हासिल करने की चाह रखने में किस चीज़ से मदद मिलती है?
On Aug 7, 2022 Bernice wrote :
Keep on posting!
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