Love Is The Highest Form Of Acceptance

Author
Stephen Levine
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Image of the Weekप्रेम ही सबसे ऊँचे प्रकार की स्वीकृति है द्वारा स्टेफेन लेवाईन

प्रेम ही सबसे ऊँचे प्रकार की स्वीकृति है| निर्णायक प्रवृति “ स्वीकृति- नहीं” होने का जरिया है | हो सकता है कुछ ये कहें कि बिना “ अच्छे की निर्णायक क्षमता “, के “विवेकी प्रज्ञा “ का अभाव रह जायेगा , पर विवेकी प्रज्ञा ही एक प्रक्रिया है हमारे दुःख के कारणों को गर्भ ( गहरी तह) से बाहर निकालने की , और प्रेम को अपनाने की , वह प्रेम जो अपने आप में “एक महानतम अच्छाई है “ |

हमारा मन पूरे दिन “ मुझे पसंद है” एवं “मुझे पसंद नहीं है” में लगा रहता है, औरों का निर्णय करता रहता है , शिकायतें करता रहता है, , यहाँ तक की निंद्रा के समय भी यही करता रहता है| वो शिकायत करता रहता है कि हम क्या कर रहे हैं , हम कहाँ जा रहे हैं ,एवं हम क्या कर रहे थे , हम कहाँ पे थे| हमारा मन उन सभी पर अपने निर्णय देता चलता है जो हमें इस जीवन की राह पर मिलते जाते हैं , चाहे वो हमारा परिवार हो या पडोसी, साथ काम करने वाले या हम जिनके अधीन काम करते हैं, मित्र एवं हमारे प्रिये , हमारे पति पत्नी अथवा पूर्व के पति - पत्नी, एवं उन सबके लिए जिनके लिए उसे लगता है कि उन्होंने हमें वो नहीं दिया जिसपे हमारा अधिकार था या जो हमारा बनता था |

हम प्रेम न किये जाने पर दुःख व्यक्त करते हैं। हम शिकायत करते हैं कि हम कैसा महसूस करते हैं, हम कैसे दिखते हैं, ये बहुत ठंडा है , ये बहुत गर्म है । दलिया कभी भी बिल्कुल सही नहीं होता | हमें पूरे दिन जीवित रहने के बारे में शिकायत है । हमें सारी रात मौत के बारे में शिकायत है ।

हम इच्छाओ के कारण शिकायत करते हैं और उसके विपरीत दिखाते हैं , और उन्ही इच्छाओं के कारण से शर्मिंदा होते हैं और पछतावे से भर जाते हैं। एक क्षण में मन कहता है, "एक गर्मागर्म जलेबी खाओ!" और कुछ क्षण बाद, जब उसे खा कर आप अपना मुँह पोंछ रहे होते हैं तो मन कहता है "अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो ऐसा नहीं करता| “| परस्पर विरोधी इच्छाएँ, यह हमारे जीवन की कहानी है।

हम शायद ही कभी इच्छा की ताकत पर ध्यान देते हैं जब तक कि हम जो चाहते हैं उसे पाने के लिए हम खुद को जलेबी के पास झुका हुआ, या अपने अनगिनत दुःख के करीब, अपने आपको ऐसे व्यक्ति के रूप में देखते हैं जिसे हम शायद पसंद भी नहीं करते|

लेकिन इच्छाएँ ऐसी नहीं हैं , जैसी कि अफवाह फैली है| यह "बुरी" नहीं है, यह सिर्फ दर्द देने वाली है। जिसकी हम इच्छा करते हैं, और वो जब तक हमें मिल नहीं जाती , हमारे मन में एक अभाव पैदा करती है , और फिर जब वो इच्छा पूरी भी हो जाती है तब भी इसके बारे में शिकायत रहती है कि मुझे जैसा चाहिए था , यह वैसा नहीं है। यह इच्छाओ के पूर्ती के लिए दर्द है , हमारी आँतों और छाती के मध्य (यानि ह्रदय) में व्याप्त अनश्वरता का दर्द है |

हर किसी के पास एक इच्छा प्रणाली होती है जो मन को हमेशा आगे ले जाती है। यहां तक ​​कि जीसस, दलाई लामा, यहां तक ​​कि गांधी की भी इच्छाएँ थी। कम से कम दूसरों के कल्याण के लिए, अधिक से अधिक जीने के लिए और शायद कभी-कभी दर्द से बचने के लिए।

विडंबना यह है कि संतुष्टि जितनी अधिक होगी, असंतोष का सामर्थ्य उतनी ही अधिक होगा | रस्सी जितना गहरी जलती है और अपने निशान छोड़ती है, यानि हम जिसे जितनी जोर से पकड़ते हैं वह अनश्वरता द्वारा खींच लिया जाता है। इच्छा शक्ति हमारी स्मृति से भी अधिक जीवित रहती है।

इसका मतलब यह नहीं है कि हमें इच्छा को रोकना चाहिए, चाहे ऐसा करने की हमारी इच्छा कितनी भी प्रबल क्यों न हो, इसके बजाय हमें इससे करुणा पूर्वक मिलना चाहिए ,और क्षणिक सौंदर्य में भी संतुष्टि खोजनी चाहिए ।

बेशक समस्या केवल इच्छा नहीं है, बल्कि इसकी निरंतर संतुष्टि के प्रति हमारा लगाव है जो इच्छा को जागरूकता की वस्तु से चेतना के अधिग्रहण में बदल देता है। हमें संतुष्टि पाने की लत लग चुकी है ।

इच्छा की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि जिस गुण को हम संतुष्टि कहते हैं, वह संतुष्टि जब इच्छा के क्षणिक अभाव में ही उभर के आती है । वह इच्छा जो हमें अक्सर ऊपर ऊपर तक रखती है , और हमें उस संतुष्टि से वंचित रखती है जिसे कुछ लोग सबसे गहरी संतुष्टि के रूप में मानते हैं, वह उस ज्योति प्रकाश की एक झलक है जो इच्छा के बादलों के कुछ समय हटने पर ही दिखाई देती है। "महान संतुष्टि"। यह कोई मनोविज्ञान नहीं है, यह मनुष्य की रचना का ही एक हिस्सा है। जब हम इसे स्वयं अनुभव करते हैं तो हम देखते हैं कि कैसे इच्छा का कुछ समय के लिए नहीं होना ही, संतुष्टि की स्थिति को जन्म देता है।

चिंतन के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से कैसे संबंधित हैं कि यह इच्छा का कुछ समय के लिए नहीं होना ही संतुष्टि की स्थिति को जन्म देता है? क्या आप एक व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जब आप इच्छा से करुणा पूर्वक मिले थे और कुछ पल की सुंदरता में संतुष्टि में उसे पाया था? आपको दुख के कारणों को गर्भ से निकालने में और उसके बदले प्रेम को चुनने में, किस चीज़ से मदद मिलती है ?
 

For over thirty-two years, Stephen Levine provided emotional and spiritual support for those who are life-threatened, and for caregivers. Excerpted above from a blog he had shared couple years before his passing in 2016.


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