I Am Me

Author
Virginia Satir
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Image of the Weekमैं , मैं हूं| द्वारा वर्जीनियाँ सतिर
मैं, मैं हूं|पूरे विश्व में मेरे जैसा कोई नहीं है| कुछ लोग हैं , जिनके कुछ हिस्से मेरे जैसे हैं, परन्तु सारे जोड़ कर भी , पुर्णतः मेरे जैसा कोई नहीं है|इसलिए जो कुछ मेरे से बाहर आता है, वो वास्तविक रूप में मेरा ही है, क्योंकि सिर्फ मैंने ही उसे चुना है|
मैं ही मेरी हर चीज़ का स्वामी हूं, , मेरे शारीर और जो कुछ भी वह करता है: मेरा मश्तिष्क और उसका सारा चिंतन और उसके विचार; मेरी आँखे और जो भी छवियाँ उनमे समाई हैं; मेरी भावनाएं , जैसी भी हों, जैसे, क्रोध, आनंद, प्रेम, निराशा, उतेजना की भावनाएं ; मेरा मुंह और उससे बाहर आने वाले समस्त शब्द चाहे वो विनीत, मधुर या रूखे, सही या गलत हों; मेरी आवाज़ तेज या शीतल| और मेरे सारे कार्य , चाहे वो किसी और के लिए हों या मेरे अपने लिए|
मेरी कल्पनाएँ, मेरे सपने, मेरी आशाएं, मेरे भय , मैं ही इनका स्वामी हूं| मेरी कामयाबियां, सफलताएँ, विफलताएं, गलतियों का स्वामी भी मैं ही हूं| चूँकि मैं ही अपने सर्वस्व का स्वामी हूं, इसलिए मैं अपने आतंरिक रूप से वाकिफ हूं | इस तरह मैं अपने आप से प्यार कर सकता हूं और अपने समस्त हिस्सों से मित्रता रख सकता हूं| उसके बाद ही मैं पूर्ण रूप से अपने उच्चतम हितों के लिए कार्य कर सकता हूं|
मैं जानता हूं कि मेरे कुछ पहलू हैं जो मुझे पहेलियाँ लगते हैं, और कुछ ऐसे पहलु हैं जिन के बारे में मैं नहीं जानता | जब तक मैं अपने प्रति प्रेम एवं मित्रता की भावना रखता हूं, मैं दिलेरी एवं आशावादिता के साथ उन पहेलियों के समाधान खोज सकता हूं और अपने बारे में और जानंने के तरीके अपना सकता हूं|
पर मैं किसी भी समय , जैसा भी दीखता और लगता हूं, जो भी कहता और करता हूं, जो भी सोचता और महसूस, करता हूं, वो मैं ही हूं| ये ही वास्तविक है , और मैं इस समय कहाँ हूं, दर्शाता है| बाद में जब मैं स्वनिरिक्षण करता हूं, मैं कैसा दिखा या लगा, मैंने क्या कहा या करा , मैंने क्या सोचा या महसूस किया, तो ऐसा लगता है मेरे कुछ हिस्से अनुपयुक्त हैं| मैं अनुपयुक्त हिस्सों की छंटनी कर सकता हूं, और उन हिस्सों को रख सकता हूं जो उपयुक्त हैं, और छंटनी किये गये हिस्सों के बारे में कुछ नई रचना कर सकता हूं|
मैं देख, सुन, महसूस, सोच , बोल एवं कर सकता हूं| मेरे पास जीवित रहने के साधन हैं, औरों से आत्मीय रह सकता हूं, उत्पादक हो सकता हूं, और मेरे से बाहर के संसार और व्यक्तियों में मायने और व्यवस्था देख सकता हूं| मैं ही मेरा स्वामी हूं, और अपने आपको गढ़ सकता हूं|
मैं , मैं हूं, और मैं ठीक हूं|
मनन के लिए बीज प्रश्न : इस दृष्टिकोण से आप कैसा नाता रखते हैं, कि मैं स्वयं अपना स्वामी हूं, और इस कारण मेरे पास अपने को गढ़ने की आज़ादी है? क्या आप ऐसे समय की कहानी साझा कर सकते हैं, जब आपने अपने आपको , अपने अनुबंधन ( conditioning) का स्वामी माना हो, और अपने आपके विकसित की आज़ादी पे अधिकार जताया हो? आपको, अपने आप से मित्रता की भावना रखते हुए , अपने आप की
 

Virginia Satir was an author and family therapist who wrote this poem when she was working with a teenage girl who had a lot of questions about herself and what life meant.


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