I Have No Need For An Enemy


Image of the Weekमुझे शत्रु की आवश्यकता नहीं है. , द्वारा ट्रॉय चैपमैन

न्यायधीश ने सज़ा का फैसला सुनते हुए कहा कि , " मुझे ऐसी उम्मीद नहीं है की तुम दोबारा बस सकते हो।" यह ६० से ९० साल की सज़ा का फैसला, शायद मेरे जीने की राह का, एक दुखभरा,किन्तु उम्मीद के मताबिक, ही था। तार्किक रूप अनुसार मैंने अपने जीवन को अंत करने का भी सोचा। पर अंत में मैंने जीने का हि फैसला लिया।ऐसा नहीं है की मैंने सिर्फ नहीं मरने का फैसला लिया , परन्तु उस क्षण से जीवंत जीवन जीने का, जीवन को गले लगाने का, जीवन में उद्देश्य और सत्य प्राप्त करने एवं उसे जीने का फैसला लिया।

ये मुझसे शुरू हुआ। मुझमे इस प्र्श्न का जूनून सवार हुआ की क्या गलत हुआ है और इसे कैसे सुधारा जा सकता है। मुझे यह जानना था कि मेरे टूटने की शुरुआत कहाँ से हुई | क्या यह सिर्फ मेरे साथ हुआ या मैं एक बड़े विघटन में एक भंग मात्र हूँ | जैसे जैसे मैं जाग्रति की और बढ़ा , मेरे मन में औरों के लिए और अपने सभी के लिए करुणा जागी। मेरे में सामाजिक जागरूकता जगी जो शीघ्र ही सामाजिक सक्रियता में परिवर्तित हो गयी।
इस धारणा ने मुझे सहारा दिया और एक नैतिक व्यवस्था दी। पर शीघ्र ही मुझे ज्ञान हुआ की कि मेरी सक्रियता , मेरे पूर्व के क्रोध से भिन्न नहीं है। और मेरा क्रोध फिर से वापस आ गया है , फर्क सिर्फ यह है की अब वो एक भावना के साथ है ,की एक अच्छा काम कर रहा हूँ और बुराई से लड़ रहा हूँ। मैं क्रोध को अपने से दूर नहीं कर पाया हूँ , सिर्फ उसे उचित ठहरा पा रहा हूँ। मेरे अभी भी शत्रु थे, मैं अभी भी उनके विरोध मैं था और अभी भी उनको हरा के ख़त्म कर देना चाहता था। हालाँकि मैं अभी अपने शत्रुओं का शारीरिक नुकसान के बजाये उनका राजनैतिक , बौधिक, सामाजिक एवं दार्शनिक नुकसान करना चाह रहा था , पर यह थी तो दुश्मनी ही। मेरी सक्रियता , मेरे पूर्व के सोच की तरह, द्वैतवादी ही थी।

समय लेकर , द्वैतवाद, सरल भलाई की प्रवृति में तब्दील हो गया। इस बदलाव का मुख्या उत्प्रेरक, और कुछ नहीं बस थकान ही थी । मैं हर वक़्त के क्रोध से तंग आ चुका था , हर दिन सवेरे उसी जंग से लड़ने से तंग आ चुका था। मुझे विश्राम चाहिए था। इस जरूरत ने मुझे आसान नैतिक दृढ विश्वास से अलग कर दिया। मैं, अपने दुश्मनों की निगाह से, हर चीज़ को देखने की क़ाबलियत हासिल करने लगा। मेरे को उनमे वही डर नज़र आया जो मुझपे राज़ करता था। वही भ्रम , वही सुरक्षा की खोज, वही प्यार पाने की भूख। मैंने उनकी मानवता देखी और मैं अपना लड़ाकू स्वाभाव खोने लगा।
पर क्या वो मेरी सक्रियता का अंत था? कुछ समय तक मुझे लगा हाँ , क्योंकि कोई बिना दृढ़ता से पक्ष लिए सक्रिय कैसे हो सकता है? मैं कारागृह से कैसे लड़ सकता हूं, अगर मेरी कारापाल से सहानुभूति है?

मैंने समस्त जीवन में ,विश्व को दो भागों में बांटा था, और एक दूसरे की लड़ाई में, पक्ष लेने में, लगा दिया। मेरे खेल में रणनीति थी,एक साफ़ मक़सद था, एक रण क्षेत्र था और एक विरोधी था। हर खेल के नियम होतें हैं , और फिर हम किसी भी तरफ हों , हमें उन नियमों से बंधे होते हैं। शायर रूमी ने शायद उस खेल से आगे बढ़ के यह कहा" अछाई और बुराई के विचार से आगे एक क्षेत्र है , मैं तुम्हें वहां मिलूंगा। "

मैं जब अपने आपको दूसरों में देखने लगा, अपने दुश्मनों में देखने लगा , तो मैं शायर रूमी के क्षेत्र की और बढ़ने लगा | यहाँ यह खेल, एक खेल नहीं है। कोई नहीं जीतता है, जबतक सारे नहीं जीत जाते। पीड़ित और अपराधी के बीच में " मैं और औरों " की रेखा नहीं दौड़ती। अब ये रेखा मेरे अंतह मन के मध्य मैं दौड़ती है क्योंकि मैं ही दोनों हूँ, हम सभी दोनों हैं।

फिर लड़ने के लिए क्या बचा ? बिना काम का कार्यकर्त्ता कहाँ जाए ? सही है, प्रभु काम पे ले रहे हैं, और प्रभु तीसरी तरफ हैं। न वो कारापाल की ओर हैं ना हि कैदी की ओर हैं , न वो विल्कल्प के समर्थक हैं और न ही जीवन के समर्थक हैं। न वो बायें हैं और न ही दाहिने। ये तीसरा रास्ता , वो कम वर्णित इलाज़ का रास्ता है। ये वो रास्ता है जो एक शत्रु और मित्र के बारे में सामान रूप से परवाह करता है और जिसके अनुसार प्यार ही एकमात्र न्याय है और प्यार ही एकमात्र जीत है। ये किसी का विनाश नहीं चाहता। ये कोई ऐसी जीत नहीं चाहता जिसमे कोई दूसरा हार रहा हो। ये हार और जीत से ऊपर उठ कर कोई लक्ष्य चाहता है।

मैं खुद से सवाल करके इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की शत्रु भी कोई उदेश्य पूरा कर रहे होते हैं। युद्ध का रिश्ता भी प्रतीकात्मक होता है , जहाँ एक तरफ का शत्रु दुसरे तरफ के शत्रु की कोई अन्तः करण की ज़रुरत पूरा कर रहा होता है जबकि दोनों तरफ के लोग इस बात से सहमत नहीं होते और वो कहते हैं की हम इस लिए लड़ते हैं क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

मैं इस निष्कर्ष पे पहुंचा हूँ की मेरे पास विकल्प है। वस्तुतः हमारे पास प्रतिक्रिया की आज़ादी ही एकमात्र आज़ादी है। बाहरी संसार हमारे काबू में नहीं है, पर हमारी प्रतिक्रिया की आज़ादी हमारे काबू में है। मुझे किस शत्रु की आवश्यकता नहीं है।

विचार के लिए बीज़ प्रश्न : आप इस विचार से कितना सम्बन्ध रखते हैं की प्यार ही एकमात्र न्याय है। क्या आप एक व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जब आप चिकित्सा वाले तीसरे रास्ते पर गए हों। वो क्या है जो आपको, अपने को , दूसरो में देखने मैं मदद करता है, यहाँ तक के अपने शत्रु में, अपने आप को ,देखने में मदद करता है
 

Excerpted from this an article, published in 2002 in Yes Magazine.


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