
हम जो भी हैं, उसमें खुश रहें
- मार्क नेपो द्वारा
हमारे अस्तित्व में सदैव कोई उद्देश्य होता है, परन्तु हर उद्देश्य में अस्तित्व होना स्वाभाविक नहीं है।
हम कितनी आसानी से, अपने आस पास के लोगों के सम्बन्ध में हम कौन हैं, ये परिभाषित करते पाए जाते हैं । मुझे याद है कि चौथी कक्षा में स्कूल से घर जाते हुए जब मैंने रॉय (एक सहपाठी जो मुझे पसंद नहीं था) को सड़क की दूसरी तरफ मेरे सामान चलते हुए देखा । जब तक मैंने रॉय को नहीं देखा था, मैं घर जाने की ख़ुशी में खोया हुआ, स्कूल से मुक्त था , घर के अंदर इंतज़ार करने वाले गुस्से में अभी तक मैं उलझा नहीं था । लेकिन एक बार रॉय को देखने के बाद , मैं बिना कोई शब्द कहे , उसे पीछे छोड़ने के लिए तेज़ी से चलने लगा। उसने निश्चित रूप से तुरंत ही यह महसूस किया और अपनी चाल तेज़ कर ली। जैसे ही वो मुझसे आगे निकलता, मुझे महसूस होता कि मैं पीछे हो रहा हूँ और मैं भी अपनी चाल को बढ़ाता जाता। इससे पहले कि मैं यह समझ पाता, हम दोनों 'कोने तक' की दौड़ में थे, और मुझे लगा कि अगर मैं कोने तक पहले नहीं पहुँचा तो मैं एक बुरी तरह हारा हुआ इंसान होऊंगा।
मैं अब तक दुनिया में इतना समय बिता चुका हूँ कि यह जान सकूँ कि इसी तरह हमारी महत्वाकांक्षाएं अक्सर विकसित होती हैं। हम पहले पाते हैं कि अपने कार्य (जिसे करने से हमें ख़ुशी मिलती है) को अकेले करने में कितने खुश हैं। लेकिन इस राह पर हमें अचानक दूसरे लोग मिलते हैं। और हम तुलना की दौड़ में फिसलते जाते हैं, और फिर हम खुद को नाकामयाब घोषित होने से बचाने के लिए दौड़ते रहते हैं।
यहाँ से, हम अक्सर अपने निकटतम लक्ष्य को उद्देश्य समझते हैं। अगर हम कोई लक्ष्य आस पास नहीं ढूंढ पाते हैं तो ये समझा जाता है कि हम दिशाहीन हैं। परन्तु हमारा स्थायी उद्देश्य हमारे साँस लेने में है, हमारे अस्तित्व में है। जैसा कि मानवतावादी कैरोल हेगेड्स हमें याद दिलाती हैं, "जब हम अपने अन्तर्मन पर ध्यान देते हैं, उस समय हम पूरी भावना से जो भी होते हैं, वही हमारा उद्देश्य है।"
इसीलिए करियर और नौकरियों और सेवानिवृत्ति के बारे में हमारी सभी चिंताओं से नीचे, हमारा उद्देश्य वास्तव में पूरी तरह से जीवित रहना है, सभी नामों और ख़िताबों (जो हमें दिए गए हैं), के नीचे हमारा उद्देश्य जाग्रत होना है।
बुद्ध को उनके ज्ञान के पल में सोचो, जब वो भीतर से प्रकाशित थे । मुझे नहीं लगता कि उन्हें पता था कि वो दमक रहे हैं। असल में, ऐसा कहा जाता है कि जब बुद्ध बोधि वृक्ष के नीचे से उठे थे, एक भिक्षु उनकी चमक से अचंभित होकर उनके पास पहुंचा और उसने उनसे पूछा, "आप क्या हो? आप जरूर भगवान हो।" बुद्ध स्वयं के बारे में कुछ नहीं सोच रहे थे, उन्होंने उत्तर दिया, "नहीं...भगवान नहीं" और चलते रहे। लेकिन अचंभित भिक्षु ने फिर कहा, "फिर आप एक देव हो" और बुद्ध रुक गये, और बोले, "नहीं...कोई देव नहीं" और चलते रहे। फिर भी भिक्षु उनके पीछे चलता रहा "तब आप साक्षात् ब्रह्म होंगे!" इस पर बुद्ध ने कहा, "नहीं"। भिक्षु, उलझन में, "तो आप कौन हैं, कृपया मुझे बताईए, आप कौन हैं?!" बुद्ध अपनी ख़ुशी को दमित नहीं कर सके और बोले, "मैं सचेत हूँ"।
क्या यह हो सकता है कि हम चाहे किसी से भी मिलें, हमें कोई भी बात बताई गयी हो, हमारा उद्देश्य 'जाग्रत होना' होना चाहिए?
गहन चिंतन के लिए प्रश्न: आप हेगेड्स की उद्देश्य की परिभाषा "जब हम अपने अन्तर्मन पर ध्यान देते हैं, उस समय हम पूरी भावना से जो भी होते हैं, वही हमारा उद्देश्य है" से खुद को कैसे जोड़ पाते हैं? क्या आप अपने निजी जीवन के किसी ऐसे अनुभव को बाँट सकते हैं जब आप अपने आप (आप अंदर से जो भी हैं) से खुश थे? आपको पूरी तरह से जीने में और अपने आप से खुश रहने में क्या चीज़ सहायक है?
मार्क नेपो की 'बुक ऑफ अवेकनिंग' से
On Jan 21, 2021 Indigo Health wrote :
Rumi: "Sell....cleverness......buy bewilderment"
"It is the human mind which deters our Selves from the path known as our intentional purpose!"
Quote provided by Indigo Health. ©ï¸ 2021. Indigo Health. All rights reserved.
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