Is There Righteous Anger Ever?

Author
J. Krishnamurti
24 words, 25K views, 16 comments

Image of the Weekक्या कोई क्रोध कभी न्यायसंगत हो सकता है?
- जे कृष्णमूर्ति द्वारा

हिंसा की तमाम सामान्य अभिव्यक्तियों में से एक है: क्रोध। जब मेरी पत्नी या बहिन पर हमला किया जाता है, मैं कहता हूँ मेरा गुस्सा न्यायसंगत है; जब मेरी जन्मभूमि पर आक्रमण किया जाता है, मेरे विचार, मेरे सिद्धांत, मेरी जीवन-शैली, पर हमला किया जाता है, तब मैं कहूंगा कि मेरा गुस्सा जायज़ है [...] तो जब हम क्रोध के विषय में बात करते हैं, जो की हिंसा का ही एक हिस्सा है, तब क्या हम अपनी खुद की प्रवृत्ति और वातावरण द्वारा संचालित 'सही' या 'ग़लत' के संदर्भ में क्रोध को देखते हैं, या हम केवल क्रोध को देखते हैं? क्या कभी क्रोध न्यायसंगत हो सकता है? या क्रोध केवल क्रोध होता है?

जिस क्षण आप अपने परिवार, अपने देश, एक रंगीन कपड़ा जिसको झंडा कहा जाता है, एक विश्वास, एक विचार, एक हठधर्मिता की रक्षा करते हैं, उस रक्षण मात्र से ही क्रोध का संकेत मिलता है। तो क्या आप क्रोध को बिना किसी स्पष्टीकरण अथवा तर्गसंगतता के देख सकते हैं? बिना यह कहे, "मुझे अपनी संपत्ति की रक्षा करनी चहिये", या "मेरा गुस्सा जायज़ था" या "ग़ुस्सा करना मेरी बेवकूफी थी"। क्या आप क्रोध को इस प्रकार देख सकते हैं जैसे की वह स्वयं ही कुछ था?

क्रोध को निष्पक्ष रूप से देखना अत्यंत ही कठिन है क्योंकि यह मेरा ही एक हिस्सा है, परन्तु यही वह कार्य है जिसे मैं करने की कोशिश कर रहा हूँ । चाहे मैं कैसा भी हूँ: काला, भुरा, सफ़ेद या बैंगनी, मैं एक हिंसक व्यक्ति हूँ । मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैंने यह हिंसा विरासत में प्राप्त की है या फिर समाज ने मुझे हिंसात्मक बना दिया है; फर्क पड़ता है तो सिर्फ इस बात से की क्या मेरा कभी भी इस हिंसात्मक स्वाभाव से मुक्त हो पाना संभव है? हिंसात्मकता से मुक्त होना मेरे लिए सब कुछ है। यह मुझे और दुनिया को नष्ट कर रही है। मैं खुद को जिम्मेदार समझता हूँ- यह सिर्फ बहुत सारे शब्द नहीं हैं- और मैं खुद से कहता हुँ, "मैं तभी कुछ कर सकता हूँ जब मैं क्रोध से, हिंसा से और राष्ट्रीयता से परे हो पाऊं। लेकिन हिंसा से परे जाने के लिए मैं इसे रोक नहीं सकता, ना ही मैं इसे नकार सकता हूँ... मुझे इस पर ध्यान देना पड़ेगा, इसका अध्ययन करना पड़ेगा, इससे सुपरिचित होना पड़ेगा और अगर मैं इसकी निंदा करता हूं या इसे सही ठहराता हूं तो मैं इससे परिचित नहीं हो सकता।
गहन चिंतन के लिए प्रश्न: बिना क्रोध की आलोचना अथवा तर्गीकरण के; क्रोध को सिर्फ क्रोध की तरह देखने की इस धारणा से आप खुद को किस प्रकार से जोड़ पाते हैं? क्या आप उस समय की एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आप अपने गुस्से को बिना किसी निंदा या न्याय के बिना देख सकते थे? क्रोध के समाजशास्त्रीय विश्लेषण से ऊपर उठने में और खुद को क्रोध से मुक्त करने में क्या चीज़ सहायता करती है?
जे. कृष्णमूर्ति द्वारा 'फ़्रीडम फ्रॉम डी नोन' से कुछ अंश
 

Excerpted from "Freedom from the Known" by J. Krishnamurti.


Add Your Reflection

16 Past Reflections