The Value of Solitude


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एकांत का मूल्य
-- विलियम देरेसिवित्ज ( १६ मई, २०१६)

अकेलापन सहचर्य का अभाव नहीं है, यह उस अनुपस्थिति पर होने वाला दुख है। खोई हुई भेड़ अकेली है; उसका चरवाहा अकेला नहीं है। लेकिन इंटरनेट अकेलेपन को पैदा करने की उतनी ही शक्तिशाली मशीन है जितनी कि टेलीविजन बोरियत का निर्माण करने में। अगर हर दिन छह घंटे टेलीविजन के सामने बैठना बोरियत के लिए योग्यता, आराम से बैठ पाने की अक्षमता बनता है, तो एक दिन में सौ इंस्टेंट मैसेज अकेलेपन की योग्यता, और अपने साथ रह पाने की असमर्थता बनाते हैं। कुछ हद तक बोरियत और अकेलापन तो अपेक्षित है, खासतौर पर युवा लोगों के बीच, ये देखते हुए कि जैसे कैसे हमारा मानव पर्यावरण कमज़ोर हो गया है। लेकिन टेक्नोलॉजी उन प्रवृत्तियों को बढ़ाती है।जब मैं एक किशोर था तब आप अपने सहपाठियों को फोन कर सकते थे, लेकिन आप उनको दिन में सौ बार फोन नहीं कर सकते थे। जब मैं कालेज में था, आप अपने दोस्तों के साथ मिल-बैठ सकते थे, लेकिन आप उनसे जब चाहे नहीं मिल सकते थे, जिसका सरल सा कारण था कि आप उन्हें हर वक्त ढूंढ नहीं सकते थे। अगर बोरियत टीवी की पीढ़ी की एक महान भावना है, तो अकेलापन वैब पीढ़ी की एक महान भावना है। हमने स्थिर रहने की क्षमता, अपनी निष्क्रियता की क्षमता को खो दिया है। उन्होंने अकेले रहने की क्षमता, एकांत में रहने की क्षमता को खो दिया है।

और एकांत खोने से, उन्होंने क्या खोया है? सबसे पहले, आत्मनिरीक्षण की प्रवृत्ति, खुद का वो परीक्षण जिसे प्यूरिटनों, और रोमांटिक, और आधुनिकतावादियों (और खासतौर पर सुकरात) ने आचरण और ज्ञान के, आध्यात्मिक जीवन के केंद्र में रखा। थोरो ने इसे, "[हमारे] खुद के स्वभाव के वाल्डन तालाब में" मछली पकड़ने,” “अपने मछली पकड़ने के काँटों पर अंधेरे का चारा लगाना” जैसा कहा है। साथ ही निरंतर पढ़ने की संबंधित प्रवृत्ति भी खो गयी। इंटरनेट लिखित शब्दों को एक टेलिवियुअल दुनिया में वापिस ले आया, लेकिन वह उन्हें उस दुनिया की तय शर्तों पर वापिस ले कर आया - यानि कि हमारे ध्यान के क्षेत्र का एक नया नक्शा खींच कर। अब पढ़ने का अर्थ है इधर-उधर से और ऊपर-ऊपर से पढ़ना; किसी एक वेब पेज पर पांच मिनट टिकना एक लम्बा समय लगता है। यह वो पढ़ना नहीं है जैसे मैरिलिन रॉबिन्सन ने वर्णित किया था: मानसिक एकांत की चुप्पी में अपने दूसरे स्व के साथ आमना-सामना।

लेकिन हम अब एकान्त मन में विश्वास नहीं करते।अगर रोमांटिक विचार वालों के पास ह्यूम और आधुनिकतावादियों के पास फ्रायड थे, तो वर्तमान मनोवैज्ञानिक मॉडल - और इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए - नेटवर्क या सामाजिक मन का है। विकासवादी मनोविज्ञान हमें बताता है कि हमारे दिमाग जटिल सामाजिक संकेतों को समझने के लिए विकसित हुए। डेविड ब्रूक्स के अनुसार, सामाजिक-वैज्ञानिक वर्तमान दौर का वो विश्वसनीय सूचकांक, संज्ञानात्मक वैज्ञानिकों ने हमें बताया है कि "हमारे निर्णय लेने की शक्ति सामाजिक संदर्भ से प्रभावित होती है"; न्यूरोसाइंटिस्ट कहते हैं कि, हमारे पास "पारगम्य मन” हैं जो कुछ हद तक "गहरी नकल" की एक प्रक्रिया के माध्यम से काम करते हैं; मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि "हम अपनी आसक्तियों के द्वारा आयोजित होते हैं”; समाजशास्त्रियों का कहना है कि, हमारे व्यवहार "सामाजिक नेटवर्क की शक्ति” से प्रभावित होते हैं।” असली तात्पर्य यह है कि ऎसा कोई मानसिक स्थान नहीं है जो सामाजिक न हो ( यहां उत्तरआधुनिक आलोचनात्मक सिद्धांत के साथ समकालीन सामाजिक विज्ञान मेल खा रहा है)। जिस तरह से युवा लोग आजकल एक दूसरे से बात-चीत करते हैं, उसमें सबसे उल्लेखनीय चीजों में से एक यह है कि वो अब थोरो के “अंधकार” के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। [...]

आज के युवा लोगों को लगता है कि वे खुद के बारे में दूसरों को पूरी तरह से समझा सकते हैं। उनमें खुद की गहराई की भावना, और उसे छिपा कर रखने के मूल्य की कमी है।

अगर उनमें यह कमी न हो, तो वे समझ जाएंगे कि एकांत स्वयं की सम्पूर्णता को सुरक्षित रखने और साथ ही उसे जांचने में हमें सक्षम बनाता है।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आपके जीवन में एकांत का क्या महत्त्व है? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बांटना चाहेंगे जब आपने एकांत के मूल्य का अनुभव किया हो? आप अपने जीवन में समुदाय की ज़रूरत के साथ एकांत की जरूरत को कैसे संतुलन में रखते हैं?

विलियम देरेसिवित्ज के क्रॉनिकल ऑफ़ हायर एजुकेशन (उच्च शिक्षा के क्रॉनिकल) में लिखे लेख: द एन्ड ऑफ़ सॉलिट्यूड
( एकांत का अं​त) के कुछ अंश।
 

Excerpted from William Deresiewicz's article in The Chronicle of Higher Education: The End of Solitude.


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