Lessening the Power of Negative Emotions

Author
The Dalai Lama
19 words, 27K views, 10 comments

Image of the Weekनकारात्मक भावनाओं की शक्ति को कम करना
-- दलाई लामा (२१ अक्टूबर, २०१५)

मैं गहराई से यह मानता हूँ कि वास्तविक आध्यात्मिक परिवर्तन केवल यह प्रार्थना करने या यह आशा करने से नहीं आता कि हमारे मन के सभी नकारात्मक पहलु गायब हो जाएं और सभी सकारात्मक पहलु खिल उठें। केवल अपने ठोस प्रयास से ही हम अपनी सच्ची आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं, वो प्रयास जो उस जानकारी पर आधारित है कि मन और उसकी विभिन्न भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्थितियों का एक-दूसरे के साथ कैसा तालमेल है। अगर हम नकारात्मक भावनाओं की शक्ति को कम करना चाहते हैं, तो हमें उन्हें जन्म देने वाले कारणों की खोज करनी चाहिए। हमें उन कारणों को हटाने या उनको उखाड़ने का प्रयत्न करना होगा। साथ ही, हमें उन मानसिक शक्तियों को बढ़ाना होगा जो उन कारणों का मुकाबला कर सकती हैं: जिन्हें हम उनका निवारण कह सकते हैं। यही वो तरीका है जिससे एक ध्यान करने वाले व्यक्ति को धीरे-धीरे वह मानसिक परिवर्तन लाना होगा जो वो लाना चाहता है।

हम यह कार्य कैसे करें ? सबसे पहले हम अपने विशेष गुण का विरोध करने वाले कारकों को पहचानें। विनम्रता का विरोध करने वाला कारक गर्व या घमंड होगा। उदारता का विरोध करने वाला कारक लोभ होगा। इन कारकों की पहचान करने के बाद, हमें उन्हें कमजोर बनाने और दबाने का प्रयास करना चाहिए। जब इन विरोधी कारकों पर हमारा ध्यान केंद्रित है, हमें साथ ही उन गुणों को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए जिन्हें हम अपने अंदर देखना चाहते हैं। जब हम अपने अंदर सबसे ज़्यादा लोभ महसूस करते हैं, हमें उदार होने के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिए। जब हम अपने आप को अधीर या आलोचनात्मक महसूस करते हैं, तब हमें धैर्यशील होने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए।

जब हम समझ जाते हैं कि हमारे विचारों का हमारी मनोवैज्ञानिक स्थतियों पर क्या विशेष प्रभाव पड़ता है, तब हम उनके लिए खुद को तैयार कर सकते हैं। फिर हम जान जाएंगे कि जब मन की एक स्थिति जागे तो हमें उसका एक ख़ास तरीके से सामना करना होगा; और अगर दूसरी स्थिति उठती है तो हमें उसपर उचित रूप से कार्य करना होगा। जब हम अपने मन को जिसे हम नापसंद करते हैं, उसके बारे में गुस्से के विचार करते हुए देखते हैं, हमें खुद को रोकना चाहिए; हमें विषय बदल कर अपने मन को बदलना चाहिए। जब तक हम अपने मन को ऐसे विचारों के अप्रिय प्रभावों को याद करने के लिए तैयार नहीं करेंगे, तो उकसाए जाने पर अपने क्रोध को रोक पाना मुश्किल है। हमें अच्छे से याद रखना चाहिए कि जब हम क्रोधित होते हैं, हम अपने मन का चैन खो देते हैं, कैसे हम अपने काम पर ध्यान नहीं दे पाते, और कैसे हम अपने चारों ओर के लोगों के लिए कितने अप्रिय बन जाते हैं। ऐसे बहुत ध्यान से सोचने पर हम आखिर क्रोध से दूर रहने में समर्थ हो जाते हैं।

एक प्रसिद्ध तिब्बती साधु ने अपनी साधना को अपने मन को देखने तक सीमित रखा। जब भी उनके मन में कोई बुरा विचार आता तो वो दीवार पर एक काला निशान लगा देते। प्रारंभ में उनकी दीवारें पूरी तरह काली थीं; जैसे-जैसे वो सचेत होने लगे, उनके विचार और नेक होने लगे और दीवारों पर सफेद निशान काले निशानों की जगह लेने लगे। हमें भी अपने रोज़मर्रा के जीवन में ऐसी सचेतता लागू करनी चाहिए।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप सदगुणों की लौ को बढ़ाते हुए विरोधी कारकों को कम करने के तरीकों से क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँटना चाहेंगे जब आप क्रोध से बचने में सक्षम हो पाएं हों? ऐसी कौनसी साधना है जिससे आपको नकारात्मक भावनाओं को कम करने में मदद मिलती है?

यह लेख दलाई लामा द्वारा लिखित, निकलस वरीलैंड द्वारा सम्पादित, “एक खुला दिल: रोज़मर्रा के जीवन में संवेदना का अभ्यास करना”, से उद्धृत है।
 

Excerpted from "An Open Heart: Practicing Compassion in Everyday Life", by The Dalai Lama, edited by Nicholas Vreeland. 


Add Your Reflection

10 Past Reflections