
विपरीत परिस्थितियों का प्रभाव
-- इरेंडा जयविक्रमा ( २० जुलाई, २०१५)
विपरीत परिस्थितियां लोगों को उन चटनाओं में भेद करने में मदद करती हैं जिन्हें वे अपने वातावरण को बदलने से नियंत्रित कर सकते हैं, और जो अनियंत्रणीय घटनाएँ होती हैं। जबकि दूसरी परिस्थिति में वे वातावरण को नियंत्रित नहीं कर सकते, पर वे उन्हें स्वीकार करके और अपनी धारणाओं को सामने के तथ्यों के अनुकूल बनाकर, उन पर होने वाली अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकते हैं। इस प्रकार, कोई गंभीर रोग निदान मिलने पर, मैं उस निदान को स्वीकार करके और यह मानकर कि मैंने एक अच्छी ज़िंदगी गुज़ारी है और अब मैं एक “बेहतर” जगह पर जाने वाला हूँ, आशावाद से उसका सामना करूँगा।
विपरीत परिस्थितियां हमें अपनी सीमाओं, इस संसार पर हमारे नियंत्रण की सीमाओं, हमारे चरित्र की कमज़ोरियों, और इस संसार में हमारे सही स्थान का बोध कराते हुए, हमें इस तरह "विनम्र" बना सकती हैं जो हमारे चरित्र के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। दूसरे शब्दों में, विपरीत परिस्थितियां हममें विनम्रता की एक स्वस्थ भावना को बढ़ावा देकर, और “हमें अच्छा क्यों बनना है?” इस प्रश्न का सबसे सही उत्तर ढूँढने में मदद करते हुए, हमें अहम की निरंकुशता से आज़ाद करा सकती हैं।
लेकिन हमें अभी भी विपरीत परिस्थितियों के प्रभाव के बारे में सब कुछ पता नहीं है। उदाहरण के लिए, हम नहीं जानते कि किस प्रकार और श्रेणी की विपरीत परिस्थितियां चरित्र के लिए "सर्वश्रेष्ठ" हैं, और यह समझ लेना ज़रूरी है कि कुछ विपरीत परिस्थितियां ऎसी होती हैं जिनका अंजाम बहुत आशापूर्ण नहीं होता। कुछ समय पहले, ब्लैकी और मैंने युद्ध के बाद जीवित रहने वाले लोगों से बात-चीत करने के लिए एक ऐसे देश की यात्रा की जिसका हाल का इतिहास भयानक जातीय-राजनीतिक संघर्ष से ग्रस्त था। हमारी यात्रा के दौरान हमने मौत, बलात्कार, चोट, और नुक्सान की अनेकों दिल तोड़ने वाली कहानियाँ सुनीं। एक नवयुवती जो युद्ध में बंदूक की गोलियों से गंभीर रूप से घायल हुई थी, हमारी बात-चीत के दौरान काफी सकारात्मक और उत्साहित रही। एक दूसरी महिला अपने बेटे की खोज में लगी रही, जिसके युद्ध में मारे जाने की बहुत अधिक संभावना थी। एक बहुत धार्मिक व्यक्ति के पास, जिस उपचार केंद्र में हम अतिथि थे, उस जगह के अलावा रहने का कोई स्थिर ठिकाना नहीं था। हम हैरानी से चुप्पी में पड़ गए, और जब हम वहां से रवाना हुए, तो हमने अपने आप से पूछा,” जब जीवन में सब कुछ तुम्हारे खिलाफ हो जाए, तो हमें अच्छा क्यों बनाना है?”
इन लोगों को शायद इस तरह के आघात से उबरने के लिए के लिए पूरी ज़िंदगी लग जाएगी। क्योंकि हम सब को जीवन में कभी न कभी किसी त्रासदी का सामना करना पड़ेगा, इसका ये मतलब नहीं है कि हम सक्रीय रूप से मुसीबतों की तलाश करें या जब किसी और पर मुसीबत पड़े तो हम उदासीन रहें। और हां, हमें गंभीर पीड़ा से लोगों को बचाने के लिए भरसक प्रयत्न करना चाहिए। लेकिन जिन लोगों को हम मिले उन सब को ईश्वर में सराहनीय भरोसा था, और कुछ तो इतनी पीड़ा झेलने के बाद भी खुश और सकारात्मक बने रहे। जिस तरह ये लोग बिना दुःख में पूरी तरह डूबे, अपना जीवन जीने में समर्थ हो पाए - और यहां तक कि क्षमा और दया के साथ जिए - ये बात मेरे विचार में इंसान के साहस और मौलिक मानवीय अच्छाई का एक सबसे बड़ा उदाहरण है।
विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: “हम अच्छे क्यों बनें?”, विपरीत परिस्थितियां इस प्रश्न का उत्तर देने में मदद कर सकती हैं, आप इस बात से क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव सबसे बांटना चाहेंगे जब विपरीत परिस्थितियों ने आपको विकसित होने का मौका दिया हो?' ऐसी क्या चीज़ है जो विपरीत परिस्थितियों में आपको निराशा से बचने में मदद करती है?
इरेंडा जयविक्रमा वेक फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं।
On Jul 22, 2015 Abhishek wrote :
I have looked at adversity, both for myself and in others very closely to see what it does....
[Hide Full Comment]For myself I have seen that the biggest adversity in my life (a tryst with Bipolar) opened up a totally new way of being for me (eventually, over 5 years of sitting with it) and today this fundamentally shapes who I am....
But I have also seen people regress....adversity pushes them into more base emotions and bitterness, makes them conclude (perhaps inaccurately) about the world and so on....
My sense is that the realization that we have almost no control over external events is stark, when fully embraced. Standing in that, with a belief that the Universe is well-intentioned (and that is also merely an assumption we choose) is difficult business!
Experimenting with Stoicism and engaging actively with the idea of death are practices that are preparation for adversity - and yet each time it meets me, it is always a surprise encounter! And that is what it is meant to be perhaps :)
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