Speaker: Gopal, Arti, Nine-Year-Old Ojasvi!

Losing Yourself to Find Yourself

What is this centuries-old tradition to circumambulate a river, that pulls people to undertake this 3,400 km yatra on foot? What moves the people living at Narmada banks to support the journey of the yatris so selflessly? Why would an ordinary couple - “someone like us” - proceed on a 4.5 month long parikrama, with around a river with no certainty of shelter and food (with their 9 year old daughter in tow!) What changes within you when you undertake this parikrama? What changes amongst you when you walk this pilgrimage as a family?

To explore all the above questions and more, please join the Conversation with Gopal, Arti and Ojaswi Garg moderated by Trupti Pandya, a pilgrim herself on Sunday Jun 7, 2020 at 10.30 am. Please note that the talk will be in Hindi language

Gopal Garg is co-founder of Youth4Jobs Foundation, one of India’s leading non-profit organisations in the field of skills training for People with Disability and creating inclusive spaces. Prior to that he has worked in both government and civil society organizations to promote the concept of social entrepreneurship, market linked vocational skills training for underprivileged youth, and also build bridges with the corporate sector. Gopal is also an Acumen India Fellow. He has brought a lot of sensitivity to create a shift in thinking from "disabled people" to "people with disabilities”. While being a passionate steward in his workspace, Gopal is also passionate about nature and together as a family, they have travelled and trekked in multiple places. After nearly two decades of untiring work impacting millions, he recently stepped out of Youth4Jobs in pursuit of a deeper calling. He, his wife and 9year old daughter collectively embarked on a “Walking Pilgrimage” along the banks of river Narmada, .3400kms, 5months, and 200+villages to call home later, as they return to ‘normal life’, Gopal reflects  “It was the best gift!” 

Arti’s everyday phrase during the parikrama was “Let's see what’s the emergence today and will accept it as a present from the divine”. She welcomes emergence, trust and surrender with ease in her life. Her curiosities to explore the good in the world and commitment to family led her to shift from a corporate career to experiential learning. She conducts workshops for teachers and parents on how they can support better learning. She is also a passionate storyteller, reader, and a puppeteer! During the yatra too, she took every opportunity to share her passion with the school communities they came across.

Ojasvi is loving and athletic. She loves swimming, skating and hula-hoop and can actually do the latter two simultaneously! A very generous child, she values integrity and honesty in all aspects of her life. Like her parents, she loves being in nature and can often be found perched up on a tree. For her, this yatra was an invitation to nature’s celebration. The entire journey, as she says was  of nature, with nature and in nature”.

Trupti is a loving sister of the entire community, a heARTist, pilgrim, singer, counsellor and a community weaver. She and Swara recently walked the Narmada Parikrama where she consciously practiced inner and outer service at every moment. As a trained psychologist, Trupti breathes love and compassion into traditionally harsh spaces like detention homes and prisons. While nurturing her own journey through wholesome practices and experiments, she creates and anchors many online and offline spaces for service, deeper engagement, and inner transformation.

Join us in conversation with our pilgrim friends.

कई वर्ष पूर्व अमृतलाल वेगड़ जी का नर्मदा परिक्रमा संस्मरण - "सौंदर्य की नदी नर्मदा" - में एक प्रसंग पढ़ा था। "

अमृतलाल जी अपने साथी - अनिल और श्यामलाल के साथ नर्मदा यात्रा करते करते नर्मदातट के एक गांव पहुंचे। अनिल और श्यामलाल रात्रि भोजन के लिए गांव की दुकान से राशन लेने लगे, वहीं पास एक वृद्ध बैठे थे। वृद्ध ने कहा, ‘आप राशन खरीद क्यों रहे हैं? मेरे यहाँ सदावर्त (लंगर) दिया जाता है, चलिए वहीं भोजन करिये।’ तीनों यात्री वृद्ध के साथ हो चले।  

‘यह सदावर्त कब से चल रहा है?’ अमृतलाल जी ने वृद्ध से पूछा।    

‘'75 साल से। 75 साल पहले मेरा जन्म हुआ था। इस खुशी में मेरे पिता ने यह शुरू किया था, जो आज तक चला आ रहा है। मैंने अपनी जमीन चारों बेटों में बाँट दी है, लेकिन दो एकड़ जमीन सदावर्त  के लिए अलग रख दी है। मैं नहीं रहूँगा पर सदावर्त चलता रहेगा।’

जिन्दगी तो कुल एक पीढ़ी भर की होती है, पर नेक काम पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है।"

ऐसी क्या विशेषता है नर्मदा जी में कि सदियों से परिक्रमा की परंपरा यथावत है? आज के आधुनिक युग में भी नर्मदा तट के ग्रामवासी निष्कामभाव से अन्जान यात्रियों की देखभाल करते हैं, जैसे की मानो उनके घर के सदस्य हो? कैसे एक शहरी परिवार - आरती, गोपाल और उनकी 9 वर्षीय पुत्री ओजस्वी - को नर्मदा परिक्रमा करने की प्रेरणा हुई ? 4.5  महीने पैदल चलते चलते उनमें क्या परिवर्तित हुआ? यात्रा समापन के बाद भी किस डोर से अभी भी यह परिवार नर्मदा जी से जुड़ा हुआ है? ऐसे सभी प्रश्न और हमारी जिज्ञासा को साक्षात् करेंगे इस रविवार जून 7, सुबह 10.30 बजे। आरती - गोपाल और ओजस्वी के साथ संवाद करेंगी तृप्ति पंड्या जो स्वयं नर्मदाजी की परिक्रमा कर चुकी हैं। 

गोपाल के परिचय में इतना ही कहना पर्याप्त है प्रकृति प्रेम उनके रगरग में है। इस प्रेम के कारण उन्होंने अपने परिवार सह अनेक यात्राएं / ट्रैकिंग करी है - जैसे  कैलास मानसरोवर, स्वर्गारोहिणी, केदारनाथ-यमुनोत्री,अमरनाथ ।  साथ ही गोपाल गर्ग यूथफ़ॉरजॉब्स संस्था के सह-संस्थापक हैं, जो दिव्यांगों में कौशल्य प्रशिक्षण हेतु भारत के प्रमुख संस्थाओं में एक है। यह ही नहीं, दिव्यांगों के लिए एक समावेशी वातावरण बनाने में यह संस्था कार्यरत है। यदि आप बिग बाजार, या ऐक्सिस बैंक में दिव्यांग कर्मचारियों को देखते हैं तो उनकी भर्ती, प्रशिक्षण एवं वहां के अन्य कर्मचारियों के संवेदीकरण (sensitization) में Youth4Jobs और गोपाल का योगदान हैं।  

लगभग दो दशकों के अथक काम, हजारों लोगों के जीवन को छूने के बाद, उन्होंने हाल ही में अपने दिल की सुनकर अपनी अर्धांगना आरती और 9 वर्षीय पुत्री ओजस्वी के संग नर्मदा परिक्रमा पूर्ण की। 3400 किमी, साढ़े चार महीने, और 200+ गांवों में पैदल यात्रा करने के पश्चात वे परिवार समेत मई महीने में अपने घर लौटे।  घर लौटकर अब गोपाल के मन में ख्याल आता है  “असली घर यह है या माँ नर्मदा का तट?”  

परिक्रमा के दौरान आरती का सूत्र था, "आइए देखें कि आज का दिन क्या उपहार लाया है। चलिए वर्तमान की इस क्षण में दिव्यता का दर्शन करें।" वह अपने जीवन में सहजता और समर्पण का अभ्यास करती है। रोजमर्रा के जीवन में अच्छाई की खोज और परिवार के प्रति प्रेम के कारण उन्होंने कॉर्पोरेट कैरियर को छोड़ कर अनुभवात्मक शिक्षण के क्षेत्र में प्रवेश किया । वह शिक्षकों और बच्चों के मातापिता के लिए शिक्षण शिविर का आयोजन करती हैं। उनकी कोशिश रहती है की कैसे शिक्षा को छात्र केंद्रित किया जा सके। आरती एक भावुक कथाकार, पाठक हैं और कठपुतली के माध्यम से कहानियां कहना उनका शौक है ! यात्रा के दौरान, उन्होंने ग्रामशालाओं के साथ अपनी कला को साझा करने का हर अवसर लिया।

गोपाल और आरती, श्रीमाता एवं श्री औरोबिन्दो के लिए गहरा सम्मान और भक्ति रखते हैं। विपश्यना ध्यान के अभ्यासकर्ता हैं, एक परिवार के रूप में वे प्रकृति उत्साही हैं तथा यात्रा और ट्रेक करना पसंद करते हैं। 

अपनी माता-पिता की भूमिका में वे खुद को महज एक निमित्त (माध्यम) के रूप में देखते हैं। वे अपनी बेटी ओजस्वी को अपने निर्णय लेने और अपनी विशिष्टता और व्यक्तित्व स्वयं खोजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

ओजस्वी गर्ग 9 साल की है, और वह वैसी ही है जैसी एक 9 साल की बच्ची को होना चाहिए - ओजस्वी ऊर्जा का ऊफान है ! यदि आप ओजस्वी से छुपाछुपी खेल रहे हैं और वह छुप जाती हैं तो अति संभव है कि वह किसी पेड़ पर चढ़ गयी हो ! ओजस्वी खेलप्रेमी है - विशेष रूप से वह स्केटिंग और तैराकी से प्यार करता है। अपने माता पिता के साथ ऑरोविल में बच्चों की 7 दिवसीय शिविर में बराबर हिस्सा लेती है। 

ओजस के लिए, यह परिक्रमा प्रकृति का प्रेमपूर्ण निमंत्रण था। यात्रा के दौरान ओजस्वी अपने पिता के साथ तेज़ गति से आगे चलती और अपनी माता के आने तक पिता और पुत्री गांव में रहने का प्रबंध करते। ओजस्वी के लिए यह पूरी यात्रा “प्रकृति के साथ, प्रकृति की गोद में और प्रकृति के साथ एकरूप” होने का एक स्वर्णिम मौका था। 

आइये जुड़िये इस संवाद अपने मित्र यात्रिओ के साथ. अपना ईमेल आईडी (email ID) ऊपर बॉक्स में भरे और जुड़ने की वेबसाइट आपके ईमेल पर हम भेज देंगे।                  


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