The World Feeling And The Soul Feeling

Author
Anthony de Mello
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Image of the Weekसांसारिक भावना और आंतरिक भावना
--एंथोनी डी मेलो के द्वारा


यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने जीवन की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? —मैथयू १६:२६

याद करें कि आपको तब कैसा महसूस होता है जब कोई आपकी प्रशंसा करता है, जब आपको स्वीकृत किया जाता है, सराहया जाता है। और इसके विपरीत जब आप सूर्यास्त या सूर्योदय या सामान्य रूप से प्रकृति को देखते हैं, या जब आप कोई किताब पढ़ते हैं या एक फिल्म देखते हैं, जिसका आप पूरी तरह से आनंद लेते हैं, तो आपके भीतर किस तरह की भावना पैदा होती है। इस भावना का स्वाद लें और इसकी तुलना पहले के साथ करें, अर्थात्, जो आपके भीतर उत्पन्न हुई थी जब आपकी प्रशंसा की गई थी। समझें कि पहले प्रकार की भावना आत्म-गौरव, आत्म-प्रचार से आती है। यह एक सांसारिक अनुभूति है। दूसरी आत्म-पूर्ति से आती है, एक आत्मा भावना से।

आईये एक और तरह से इसे देखें: याद करें कि जब आप सफल होते हैं, जब आप कुछ कर दिखाते हैं, जब आप शीर्ष पर पहुंचते हैं, जब आप कोई मुकाबला या शर्त या तर्क जीतते हैं तो आपको कैसा महसूस होता है। और इसकी तुलना उस तरह की भावना से करें जब आप वास्तव में उस काम का आनंद लेते हैं जो आप कर रहे हैं, आप उस कार्य में लीन हैं, जिसमें आप वर्तमान में लगे हुए हैं। और एक बार फिर सांसारिक भावना और आत्मा की भावना के बीच गुणात्मक अंतर पर ध्यान दें।

फिर एक और तुलना: याद करें कि जब आपके पास सत्ता या अधिकार था, तब आप कैसा महसूस करते थे, आप मालिक थे, लोगों ने आपकी ओर देखा, आपसे आदेश लिया; या जब आप लोकप्रिय थे। और उस सांसारिक भावना का अंतरंगता, साहचर्य की भावना के साथ तुलना करें - वह समय जब आपने किसी मित्र की संगत में या ऐसे समूह के साथ आनंद लिया जिसमें मस्ती और हँसी थी।

अब, सांसारिक भावनाओं के वास्तविक स्वरूप को समझने का प्रयास करें, अर्थात् आत्म-प्रचार की भावना, आत्म-महिमा। वे प्राकृतिक नहीं हैं, उनका आविष्कार आपके समाज और आपकी संस्कृति ने आपको उत्पादक बनाने और आपको नियंत्रित करने योग्य बनाने के लिए किया था। ये भावनाएँ उस पोषण और खुशी का उत्पादन नहीं करती हैं जो तब उत्पन्न होती है जब कोई प्रकृति का चिंतन करता है या अपने दोस्तों की संगति या किसी के काम का आनंद लेता है। वे रोमांच, उत्साह - और शून्यता पैदा करने के लिए थे।

फिर एक दिन या एक सप्ताह के दौरान अपने आप पर ध्यान दें और सोचें कि आपके कितने कार्य किए गए हैं, और उनमें से कितनी गतिविधियां इन रोमांचों की इच्छा से अदूषित हैं, ये उत्तेजनाएं जो केवल खालीपन पैदा करती हैं, आकर्षण की इच्छा, अनुमोदन , प्रसिद्धि, लोकप्रियता, सफलता या शक्ति।

और अपने आसपास के लोगों को देखें। क्या उनमें से एक भी ऐसा है जो इन सांसारिक भावनाओं का आदी नहीं हुआ है? एक अकेला जो उनके द्वारा नियंत्रित नहीं है, जो उनके लिए भूखा नहीं है, अपने जागने वाले जीवन का हर मिनट होशपूर्वक या अनजाने में उन्हें खोजने में खर्च नहीं करता है? जब आप इसे देखेंगे तो आप समझ जाएंगे कि कैसे लोग दुनिया को हासिल करने की कोशिश करते हैं और इस प्रक्रिया में अपनी आत्मा खो देते हैं। क्योंकि वे खाली, निष्प्राण जीवन जीते हैं।

और यहां आपके लिए जीवन का एक दृष्टांत है जिस पर आप विचार कर सकते हैं: पर्यटकों का एक समूह एक बस में बैठता है जो बहुत खूबसूरत देश से गुजर रही है; झीलें और पहाड़ और हरे भरे खेत और नदियाँ। लेकिन बस के शेड नीचे खींचे जाते हैं। बस की खिड़कियों के बाहर क्या है, इसका उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं है। और उनकी यात्रा का सारा समय इस बात को लेकर आपस में झगड़ों में बीत जाता है कि बस में सबसे अच्छी सीट किसके पास होगी, किसकी तारीफ होगी, किसको भला माना जाएगा। और वे यात्रा के अंत तक ऐसे ही बने रहते हैं।

मनन के लिए मूल प्रश्न: आप सांसारिक भावना और आत्मा की भावना के बीच के अंतर से कैसे सम्बद्ध हैं? क्या आप अपना कोई अनुभव साझा कर सकते हैं जब आप इस भेद को स्पष्ट रूप से देख पाए थे? सांसारिक भावनाओं के आदी होने से बचने में क्या बात आपकी मदद करती है?
 

Anthony De Mello was a Jesuit priest. Excerpt above from 'The Way to Love', a compilation of final contemplations.


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